भेड़ चालों का रटन हुआ
अब गाँव सारा पट चुका है
वाहन के शोर शराबे से
बचपन के सब खेल चले गए
मोबाइल के आ जाने से ।
गाँवों का वह आम आदमी
आमों से रस नहीं पीता है
फैक्टरी में बने पैकेट बंद
कोल्ड ड्रिंक पी कर जीता है
दुषित हो रहीं वह शुद्ध हवा ।
कीटनाशक व वाहनों के धुँए से
अब वैसी खुशी नहीं मिलती
अतिथियों के आ जाने से।
भौतिकता का विकास हुआ
पर नैतिकता का पतन हुआ
आधुनिकता की होड़ में अब
भेड़ चालों का रटन हुआ।
– विष्णु प्रसाद ‘पाँचोटिया’