भुजंगी छन्द
भुजंगी छन्द
122 122 122 12
खड़ा द्वार पे माँ लिए भावना।
लिए आरती मैं करूँ याचना।
हरो कष्ट मेरे यही कामना।
गिरूँ जो कहीं माँ तुम्हीं थामना।
कुपंथी हुई आज औलाद भी।
नही मानते बात वो मातु की।
उन्हें गालियां और धिक्कारते।
पिता वृद्ध मां को सदा मारते।
अदम्य