भाषा
मूल मातृभाषी लोग,
अपनो ही से लुट गए,
उनकी अपनी ही भाषा दूसरों के बन गए,
उनकी बोली वीरान नहीं,
पर वह वहिष्कृत हो गए,
अविश्वासी भी बन गए,
माँ की भाषा उनकी अपनी है,
पर उसे पराई बना दिए गए ।
भाषाई चचेरे भाई,
सिर्फ अपनी ही बोली मानक बना दिए,
जन–जन उसकी भाषा नहीं समझता,
पर वही भाषिक लय–शैली सभी के बना दिए,
जन–मानक शैली वहिष्कृत है,
माँ की भाषा उनकी अपनी है,
पर उसे पराई बना दिए गए ।
भाषाओं का बंदरबांट,
इस नाम से दुकान भी खूब खुल गए,
भाषाई व्यापारी लूट मे व्यस्त बन गए,
मूल मातृभाषी की बोली यथास्थिति मे हैै,
वही उसे बचा भी रहा है,
माँ की भाषा उनकी अपनी है,
पर उसे पराई बना दिए गए ।
भाषा कनेक्टिविटी का माध्यम,
लोक संस्कृति और लोकगीत इसकी शाखाएँं,
नाटुवा बजानिया इसके प्रमोटर,
उनका पारंपरिक अंदाज गलत बनाए गए,
अपनी रोटी सेकने मे नटवरलाल लगे है,
माँ की भाषा भातृभाषी की अपनी है,
पर उसे पराई बना दिए गए ।
#दिनेश_यादव
काठमाण्डू (नेपाल)