‘भारत पुत्री’
जाग- जाग अब बनो आग तुम, उठो नार ले कटार हाथ।
शक्ति का आगार अपार तुम, ना दे चाहे कोई साथ।
तुम भारत पुत्री वीरवती, खल की कर लो तुम पहचान।
जो नारी की लूटे अस्मत, जी नहीं सके वो इंसान।।
लक्ष्मी बाई बनना है अब, आँख जो उठे कर दो खार।
अपराधी को क्षमा करो मत, निर्भय हो के कर दो वार।
बाहर हो या हो अपना घर, व्यभिचारी का बन तू काल।
करनी सबकी करो उजागर, नारी नहीं किसी का माल।।
शिकार करो सिंहनी बनकर, रिक्त न जाए तेरा वार।
बहुत हुआ तू अब खुद संभल, तीखी कर अपनी तलवार।
अत्याचार सहोगी कब तक, खुलकर बोलो चुप्पी
तोड़।
बुरी नज़र ज़ो तुझ पर डाले, उंँगली से आँखें दो फोड़।।
काट हाथ जो बढ़े चीर तक, छुए जो तन भस्म कर डाल।
सदा उच्च हो तेरा मस्तक, दुनिया देखकर हो निहाल।
टूटो ऐसे दुष्कर्मियों पर, करो प्रहार ज्यों वज्रपात।
एक दूजे की ढाल बनो तब, जब करते वे तुम पर घात।।
गोदाम्बरी नेगी