भारतीय जीवन बीमा निगम : सरकारी दफ्तर का खट्टा-मीठा अनुभव*
अतीत की यादें
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भारतीय जीवन बीमा निगम : सरकारी दफ्तर का खट्टा-मीठा अनुभव
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मैंने जीवन बीमा निगम में बीस वर्ष की आजीवन पेंशन योजना ली थी। इसमें प्रतिवर्ष दस हजार रुपए का प्रीमियम देना होता था । पहले साल मैं रामपुर में जीवन बीमा निगम के दफ्तर में गया । दस हजार रुपए खिड़की पर उन्हें नगद दिए । उन्होंने रसीद बनाकर दे दी। मैं ले आया ।
अगले साल फिर दस हजार रुपए लेकर जीवन बीमा निगम के दफ्तर में गया। खिड़की पर ₹10000 तथा पुरानी रसीद दिखाकर उन्हें रुपए जमा कराने चाहे तो उनका उत्तर था ” अब इस योजना में पैसा रामपुर में जमा नहीं होता । यह कार्य बरेली के जीवन बीमा निगम के कार्यालय में जाकर आपको रुपए जमा कराकर करना होगा ।”
मैं अजीब मुसीबत में फँस गया। मैंने इसलिए तो पेंशन योजना ली नहीं थी कि मैं हर साल बरेली जाऊँ और वहाँ दस हजार रुपए जमा कराऊँ। यह तो बड़ी भारी मुसीबत गले पड़ गई। यद्यपि बरेली जाना बहुत मुश्किल काम नहीं था लेकिन फिर भी मजबूरी में तथा जबरदस्ती का जाना बोझ तो लगता ही है । लेकिन मरता क्या न करता ! बरेली जाकर वहाँ जीवन बीमा निगम का दफ्तर पता करके नगद रुपए जमा किए और रसीद लेकर घर आए ।लिखा-पढ़ी हुई जीवन बीमा निगम वालों से कि आपने हमें यह परेशानी में क्यों डाल दिया ? अगर रामपुर में इसकी किस्त जमा नहीं होती थी तो फिर हम यह योजना लेते ही नहीं ? लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला।
अगले साल फिर जीवन बीमा निगम के बरेली कार्यालय में हम गए । वहाँ जाकर पता चला कि कार्यालय का पता बदल गया है तथा कार्यालय इस स्थान से किसी दूसरे स्थान पर चला गया है । बरेली में उस दूसरे स्थान का अता-पता मालूम किया और वहाँ जाकर रुपया जमा किया।
सौभाग्य से तीसरे वर्ष पुनः रामपुर में ही रुपया जमा होना शुरू हो गया और इस तरह प्रतिवर्ष की किस्त बरेली जाकर जमा करने के झंझट से छुटकारा मिला ।
जब 20 साल पूरे हुए ,तब मैं रामपुर में जीवन बीमा निगम के कार्यालय में गया। उन्हें अपने कागज दिखाए और कहा कि अब पैसा लेने के लिए मुझे क्या करना होगा ? मन में अनेक प्रकार के प्रश्न थे । पता नहीं सरकारी कामकाज में पैसा लेने के समय अब कितनी दिक्कतें आएँ ? खैर ,काम तो करना ही था । मैं अकेला ही दफ्तर गया था । वहाँ मुझे एक सज्जन से मिलने के लिए बताया गया । मैं उनके पास पहुँचा । वह थोड़े-भारी शरीर के थे तथा स्वभाव से हँसमुख जान पड़ते थे । मुझे उन्होंने अपने पास बहुत आदर के साथ बिठाया । मेरे सारे कागज देखे और उसके उपरांत उन्होंने मुझे कई विकल्प समझाए। जिसके अनुसार मैं चाहूँ तो मुझे कुछ रुपए नगद भी मिल सकते थे । अगर मैं चाहूँ तो मुझे वार्षिक पेंशन मिल सकती थी। मुझे अर्धवार्षिक पेंशन प्राप्त करने का भी विकल्प था। एक विकल्प मासिक पेंशन का भी था । कुर्सी पर कार्य-अधिकारी के तौर पर बैठे हुए उन सज्जन ने मुझे विस्तार से सारी योजनाओं के बारे में समझाया और कहा ” जो योजना आपको पसंद हो, आप उस योजना के बारे में अपनी सहमति से मुझे अवगत कराएँ । मैं आपका सारा काम कर दूंगा ।”
मुझे यह सब एक स्वप्न की तरह प्रतीत हो रहा था । मेरी उन सज्जन से कोई जान- पहचान भी नहीं थी ,लेकिन उनका व्यवहार किसी देवता की तरह जान पड़ता था । मेरा सारा काम उन्होंने मेरे देखते ही देखते स्वयं निपटा दिया और उसके बाद मुझे कभी भी जीवन बीमा निगम के दफ्तर जाने की आवश्यकता नहीं पड़ी । कई साल से प्रतिमाह 5736 रुपए की पेंशन की रकम मेरे द्वारा बताए गए बैंक खाते में स्वतः जमा हो जाती है और मैं उस धनराशि को जब चाहे निकालता रहता हूँ। मेरी अपनी राय यह है कि व्यक्ति को कभी भी पेंशन की धनराशि का नकदीकरण नहीं करना चाहिए बल्कि जितनी ज्यादा से ज्यादा पेंशन की धनराशि मासिक तौर पर उसे मिलती रहे, वह अच्छी बात है।
सरकारी कर्मचारियों के प्रति आम अवधारणा चाहे जो भी हो ,लेकिन मेरे साथ एक अनजान सरकारी कर्मचारी द्वारा जो सद्व्यवहार किया गया और तत्परता पूर्वक तथा सद्भावना के साथ मेरे काम को निपटाया गया ,उसके लिए मैं सरकारी कर्मचारियों के प्रति अपना आभार व्यक्त करता हूँ। उन सज्जन का चेहरा अब धीरे-धीरे मेरी याददाश्त में धुँधला पड़ने लगा है। लेकिन अगर ऐसे ही कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी सरकारी कार्यालयों में दिखाई देने लगें , तो सचमुच रामराज्य आने में देर नहीं लगेगी।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451