बोलो ! क्या मुझको मेरा अधिकार दिला पाओगे तुम ?
सत्ता पर आरूढ़ जनों तुम,
गूढ़ और मतिमूढ़ जनों तुम,
हाथ तुम्हारे भाग्य देश का सौंप दिया है लेकिन बोलो !
क्या इस देश को एक उचित आकार दिला पाओगे तुम ?
बोलो ! क्या मुझको मेरा अधिकार दिला पाओगे तुम ?
यह सड़कों पर रहता जीवन,
यह काँटों में पलता उपवन,
भीख माँगते भूखे बच्चों की जल से पूरित आँखों को,
क्या उनके सपनों वाला संसार दिला पाओगे तुम ?
बोलो ! क्या मुझको मेरा अधिकार दिला पाओगे तुम ?
चारों तरफ़ ख़ून की होली,
और ख़ून से बनी रंगोली,
भड़काया दंगों को किसने,ये तो याद मगर है बोलो !
उसमें मुझसे बिछड़ा मेरा यार दिला पाओगे तुम ?
बोलो ! क्या मुझको मेरा अधिकार दिला पाओगे तुम ?