बोध
उम्र बीत गई झुर्रियां आ गईं
काश ये तब समझ लिया होता ………
समय का वहाव है सब
अपनों के ही दिए घाव हैं सब ………
सत्य तो बस सनातन है
मानव हृदय माटी का बर्तन है ………
भागमभाग तेजी से तेज
हे मानव हुआ क्यों निस्तेज ?. ………
जीवन उद्देश्य खो चुके हैं
यथार्थ भाव के अर्थ खो चुके हैं ………
सत्य पर आरुढ़ असत्य का सिंहासन
कहाँ डोलता अब कोई इन्द्रासन .? ………
कौन सा ज्ञान कैसा अध्यात्म ?
कहाँ है कृष्ण गीता का ज्ञान ? ………
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ये मिला वो पुरुस्कार की प्राप्ति
सच कहों मिली है कहीं तृप्ति ? ………
खोकर पाने की असीम इच्छा
देकर लेने की पराकाष्ठा ………
कहाँ खो गई अस्तित्व कि परिभाषा
और स्वाभिमान युक्त स्वतन्त्र भाषा ? .
और स्वाभिमान युक्त स्वतन्त्र भाषा ? ………..
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