मैं भी चापलूस बन गया (हास्य कविता)
सांवले मोहन को मेरे वो मोहन, देख लें ना इक दफ़ा
हे चाणक्य चले आओ
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
" हैं पलाश इठलाये "
भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "
तुम रख न सकोगे मेरा तोहफा संभाल कर।
गाँव से चलकर पैदल आ जाना,
मेरी तकलीफ़ पे तुझको भी रोना चाहिए।
मीलों की नहीं, जन्मों की दूरियां हैं, तेरे मेरे बीच।
दिल में कुण्ठित होती नारी
कविता-हमने देखा है
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
हर सुबह जन्म लेकर,रात को खत्म हो जाती हूं
सुबह की चाय हम सभी पीते हैं