बे-असर
खाये हैं हमने खलिश-ए-तीर-ए-बे-पनाह
बस अब तो सब बे-असर सा लगता है
आजकल कुछ खिंचे खिंचे से रहते हैं
उनके लहजे में दुश्मन का असर लगता है
घर जलाने में माहताब-ए-फलक भी था शरीक,
अब हमें चांदनी रातों से भी डर लगता है
ता-उम्र का वादा, उम्र-ए-मुख़्तसर का साथ,
हर्फ़-ए-दिल अब ज़हराबा-ए-पैकर लगता है
क़त्ल-ए-क़ासिद देखा जब हमने रू-ब-रू,
हर शख़्स के खंजर-दर-आसतीं हमें लगता है
थे ज़ुल्फ़-ए-खूबां की नर्म छाँव में कभी ‘सागर’
अपना साया भी अब ग़ैर मोअतबर लगता है
खलिश-ए-तीर-ए-बे-पनाह – bruises from many arrows
माहताब-ए-फलक – moon of sky
शरीक – involved
ता-उम्र – life time
उम्र-ए-मुख़्तसर – short age
हर्फ़-ए-दिल – word of heart
ज़हराबा-ए-पैकर – poisonous form
क़त्ल-ए-क़ासिद – murder of messenger
ख़ंजर-दर-आसतीं – dagger in sleeve
ज़ुल्फ़-ए-खूबां – tresses of beloved
ग़ैर मोअतबर – unreliable