बेतरतीब
जैसे सुदूर जंगलों में
रहने वाले लोग,
अपनी मर्जी से
बहने वाली नदियाँ,
खेत के मेढ़ों में उगे
टेढ़े-मेढ़े पेड़,
बाड़ी से लाई गई
बेतरतीब रखी सब्जियाँ,
गॉंव के सकरे रास्ते
जिसमें गुजर गई सदियाँ।
हमेशा सरल वो सीधे
सच्चे और अच्छे होते हैं,
तभी तो देहात के लोग
बड़े मजे से
एकदम बिन्दास जीते हैं।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
अमेरिकन एक्सीलेंट अवार्ड प्राप्त।