सब कुछ मिले संभव नहीं
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समेटो जितना भी,कोई हिस्सा छूट जाता है
यादों के सफ़र में, कोई क़िस्सा छूट जाता है
बड़ी हसरतों से, ये घर बनाये जाते हैं
बसते बसाते, कोई कौना छूट जाता है
बहुत ही जतन से, बीज गहरे गाड़े थे
आँसू बरसे तो,कोई कल्ला फूट जाता है
एक मुकम्मल ज़िंदगी की कोशिश में
ख़ुद ही नहीं बचता, आंखें मूँद जाता है
इन सुनसान इमारतों की,एक सी ही दास्ताँ है
बच्चे खेले, विदा हुए, बस सन्नाटा छूट जाता है
डा राजीव “सागरी”