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15 May 2024 · 1 min read

बेटी की ताकत पहचाने

बेटी की ताकत पहचानें , भले पकाती रोटियाॅं।
बात बुलंदी से वह कहती, चढ़ जाती हैं ‌ चोटियाॅं।।

चहक- चहक कर खेला करती,वही पुराने खेल को,
बचपन की यादें दे जाती, खेला करती गोटियाॅं।

अंतरीक्ष तक पहुॅंच बनाई, परचम भी लहरा दिया,
डाल -डाल से पात -पात तक, पीछे कहीं न बेटियाॅं।

घर आंगन सूना कर जाती,द्विरागमन की बात से,
अपने यौवन को पाते ही,घर बजती शहनाइयाॅं।

मातु- पिता को दिल से चाहे,मन में कहीं न रोष है ,
लाज कुलों की है वह रखतीं,करे नहीं रुसवाइयाॅं।

डी. एन. झा ‘दीपक’ ©

1 Like · 38 Views
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