=*बुराई का अन्त*=
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फिर “दशहरा-उत्सव” मनाएंगे लोग !
दशानन का पुतला जलाएंगे लोग !!
फूंक देंगे लाखों, करोड़ों के पटाखे !
बुराई नाश कर- जश्न मनाएंगे लोग !!
खुद की बुराईयां तो, नजरंदाज करेंगे !
रावण की बुराईयां– याद करेंगे लोग !!
यह सिलसिला, हर साल चलता रहेगा !
अपनी बुराई का अन्त नहीं करेंगे लोग !!
अपने अन्दर बैठे– बुराई के रावण को !
कब, किस बरस में अलविदा करेंगे लोग.?
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रचयिता: प्रभुदयाल रानीवाल==
===*उज्जैन*{मध्यप्रदेश}*=====
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