बीते दिन
बीते दिन
वो बीते दिन
अब नही आते
वो बचपन के खिलौने
अब नही भाते
वो आम के पेड़
से आम तोड़ने
अब नही जाता
शायद अब ये बचपना
अब नही आता
स्कूल जाना तो महज
एक बहाना था
दोस्तो के साथ दौड़ जो
लगाना था
लाख सुनता फटकारे पर
मैं न फड़फड़ाता पर
अब न सुना जाता
वो बचपन में एक सुकून
था जिसे अब मैं न ढूंढ पाता
वो बीते दिन थे
जिसे मैं न भूल पाता