बिदाई
हे गुरु ! तुने दिया ये ज्ञान का दान ,
कर दी हमारी नईया आर से पार ।
हम चले जिंदगी के अब नए सफर पर ,
ले कर आपकी हर बातों की गांठ ।
जिंदगी के हर मोड़ पर याद आएगी हर बातें,
जब हम करेंगे धरती पर रहकर तारों से बातें ।
यही होंगे सूरज , चांद और ये तारे ,
पर हम ना होंगे यहां सारे ।
आप से ही सीखा सजना , संवरना और रचना करना ,
पर बिना कर्म किए कैसे उतारेंगे ये कर्ज ।
हम बेटियां अपने परिवार से जुदा होंगी कन्यादान के बाद ,
लेकिन आज हम आपसे जुदा होंगी ज्ञान के दान के बाद ।
हम कभी भूल न पाएंगे वो पल ,
जो बिताए हमने आप के साथ ।
लेकिन आज हम कैसे हो जाए ,
इस बिदाई को स्वीकार कर आंखों से ओझल ।
ज्योति
(10वीं कक्षा के बाद विद्यालय में बिदाई समारोह के उपलक्ष्य पर – 26 फरवरी 2014)
नई दिल्ली