बाल दिवस
बाल दिवस
कल तक कोई बालक राही,
भीख माँगता मिल जाता था,
उसे बुला कर समझाता मैं,
बुरी चीज है, भीख माँगना,
मेहनत के बल पर तुम प्यारे,
शीष उठा कर जीना सीखो।
आज गोष्ठी आयोजित है,
‘रोको बालक श्रम’ शीर्षक है।
कोई बालक यदि मिल जाये
बोझा ढोता, मेहनत करता,
मैं उससे क्या कह पाऊँगा ?
सोच सोच कर परेशान हूँ,
कैसे उसको समझाऊँगा ?,
नहीं करूँगा श्रम तो बोलो,
कैसे पेट भरूँगा अपना,
या छोटे भाई, माँ का जो भूखे हैं l
माँ रहती बीमार
समय से दवा चाहिए.
बाल दिवस तो आज मनालूँ,
कल मुझको तो यही काम है l
अगर जाऊं स्कूल और मैं करूँ पढाई .
तो बोलो,
यह घर कैसे चल पायेगा ?
यह घर कैसे चल पायेगा ?
डा० हरिमोहन गुप्त