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22 Sep 2024 · 1 min read

कोशिश

फिर रुक के चल
गिर फिर संभल
क्यों ये समझौता
क्यों नहीं हालात बदल

हर कदम एक तलाश
कभी साथ कभी
अकेलेपन का एहसास
क्यों नहीं संपूर्ण बन

संगी साथी ठीक पर
न होना निर्भर
आप ही रास्ते चुन
आप ही मंजिल तय कर

घाव हो या अभाव
धूप हो या छांव
रुके न बढ़ते कदम
थामे न किसी का प्रभाव

टूटे ना किसी कारण से
कभी तेरा मनोबल
फिर रुक के चल
गिर फिर संभल

चित्रा बिष्ट
(मौलिक रचना)

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