*बारिश: सात शेर*
बारिश: सात शेर
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1
हमें इन बारिशों को देखकर अच्छा नहीं लगता
हमारे घर की छत इनकी वजह से ही टपकती है
2
जहाँ बारिश हुई, पंखों को फैला नाचने लगते
तुम्हारा भाग्य है यह मोर! तुम जंगल में रहते हो
3
जुदा तुमसे हुए तो उस समय बरसात थी, वरना
ये आँसू किसलिए आए, जमाने को क्या बतलाते
4
टपकती छत, हैं नाले बन्द, सड़कों पर भरा पानी
इसे देहात की भाषा में हम बरसात कहते हैं
5
ये अच्छा ही हुआ बरसात सबको मुफ्त मिलती है
कहाँ वरना गरीबों को ये मिलता जश्न कुदरत का
6
कभी लगता है जैसे बारिशें उत्सव मनाती हैं
कभी कुछ डर भी लगता है, कभी तकलीफ होती है
7
न जाने कौन-सी बरसात में जाकर नहाया था
कि पहले की तरह ही अब भी मैं सूखा का सूखा हूँ
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रचयिता :रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451