बारिश नहीं सबकी सगी बहुतों के चहरे लटकेंगे….
बारिश नहीं सबकी सगी बहुतों के चहरे लटकेंगे,
झोंपड़ पट्टी वालों की आँखों से आँसू टपकेंगे।
घास-फूस के छप्पर से जब घर में पानी टपकेगा,
कुछ सामान समेटेंगे, कुछ भूखे रह कर भटकेंगे।
भीगे आँचल, टूट रहे घर बालकनी से देखेंगे,
ऊँचे-ऊँचे महलों वाले नहीं पास में फटकेंगे।
कष्ट भले ही सह लेना,पर माँग न लेना इनसे कुछ,
रिश्ते-नाते, पास-पड़ौसी मुँह बिचका कर सटकेंगे।
कई-कई दिन कई घरों का चूल्हा नहीं जलेगा जब,
जाने कितने परिवारों के प्राण कंठ में अटकेंगे।
– रमेश ‘अधीर’