बात मेरे मन की
बात मेरे मन की
बात मेरे मन की है
बीत गया है, बचपन मेरा, चली गई जवानी है
पर बात मेरे मन की ना किसी ने जानी है ।
मैं सदा रही गंभीर सदा
पर सब समझ रहे नादानी है
बातें करती थी बहुत बड़ी-बड़ी
मगर सबको लगती बचकानी है
पर बात मेरे मन की ना किसी ने जानी है।
दुनिया समझी पागल है
और मैं समझी दुनिया दीवानी है
मैं समझी मैं कुछ नहीं जानती हूं
खुद को दुनिया माने बड़ी सियानी है
पर बात मेरे मन की ना किसी ने जानी है।
बीत गया बचपन चली गई जवानी है
पर बात मेरे मन की ना किसी ने जानी है।
स्वरचित कविता
सुरेखा राठी