बहू चाहिए पर बेटी नहीं क्यों?
विषय _ बहू चाहिए पर बेटी नहीं _क्यों
गर्भ से लेकर समाज तक कभी तिरस्कारित की जाती है
तो कभी सम्मानित की जाती है इन बेटियों पर हमेशा सवाल किए जाते है
जन्म के वक्त ही अगर खुशियां मना लें, बिटिया आई है मेरे घर- आंगन ये जता लें
उन्हें घर की आन – बान – शान मान लें, जब जन्म से ही बेटियों को खुशनसीबी समझी जाएगी
तब शायद नारी को सच्ची आज़ादी मिल जाएगी
हर एक नारी का अपना ही महत्वपूर्ण योगदान है,
सभी ने अपनी – अपनी जगह किए कई बलिदान है
इक नई ज़िंदगी को जन्म देकर भी, कभी नहीं जताती वो महान् है
ये सफर नारी का आसान नहीं, फिर भी उसके चेहरे पर मुस्कान है
ना जाने उसके हिस्से क्यों आया अपना – पराया किस्सा
वो पढ़ना चाहती थी, आगे भी बढ़ना चाहती थी
फिर भी उस लड़की को बांध दिया जाता है
तोड़ – मरोड़ के बंधनों में बांध दिया जाता है
वो दौड़ना चाहती थी, ऊंची उड़ान भी भरना चाहती
तब भी उसे बेड़ियों में जकड़ दिया जाता है
उस मासूम से सपनों को चकना – चूर किया जाता है
आख़िर क्यों उसकी लड़ने वाली आवाज़ को दबा दिया जाता है
कुछ इस तरह से एक नारी को मार दिया जाता है
बेटी चाहिए नहीं किसी को लेकिन बहू सब चाहते है
बहू कुल का मान बढ़ाए बस यही सोच अपनाते है
अपमान के लायक तो नहीं वो, फिर क्यों उसका मान नहीं होता
इक नारी के जज़्बातों का क्यों सम्मान नहीं होता, आख़िर कब तक नारी पे अभिमान नहीं होगा।
अगर बेटी बचाओगे नहीं तो बहू कहाँ से लाओगे
जो सोच बना रखी है बेटी के लिए ना जाने कब तक इसे बढ़ाओगे?
रेखा खिंची ✍️✍️