बहुत कुछ है इस मन में जो तुमको बताना है मुझे
बहुत कुछ है इस मन में जो तुमको बताना है मुझे
थोड़ी सी फुर्सत निकालकर बैठो तो पास मेरे तुम।
सब कुछ पता है तुमको अगर थोड़ा मेरे मन को भी जान लो तुम।
मेरे मन के कोने से अभी तक कैसे हो अनजान तुम ।
मेरे बिना कहे ही जान लेते हो जो सब कुछ तुम।
थोड़ी सी फुर्सत निकालकर बैठो तो पास मेरे तुम।।
मन मेरा है एक कमरे के दरवाजे सा,
जिसका दरवाजा ना अभी तक खटखटाया है तुमने।
जाते हो तुम गलियारों में घूम फिर कर आ जाते हो
कभी उस बंद दरवाजे का , दरवाजा भी खटखटाया करो।
बहुत कुछ है इस मन में जो तुमको बताना है मुझे।
थोड़ी सी फुर्सत निकालकर बैठो तो पास मेरे तुम।।
इन बंद दरवाजों के पीछे कर दिया है बंद मैंने अपने मन को।
नहीं दी है इजाजत मैंने अपने मन को कि खोल दे इन बंद दरवाजों को।
इन बंद दरवाजों से कभी आती है आवाज कि कब तक बंद रखोगे इन दरवाजों के पीछे हमें अब तो आने दो बाहर हमें।
प्रतीक्षा करते हुए बीते हैं दिन ,महीने और साल
किसी ने भी नहीं खटखटाया इन बंद दरवाजों को अभी तकl
बहुत कुछ है इस मन में जो तुमको बताना है मुझे।
थोड़ी सी फुर्सत निकालकर बैठो तो पास मेरे तुम।।