Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
8 Jun 2021 · 1 min read

बरसात के विविध रंग

????बरसात के विविध रंग????
बूंद नहीं भावों के मोती, झरते इस बरसात में!
ले आते हैं मचलती तरंगें, अपने संग सौगात में !!
बचपन,तरुण, जवानी,बुढ़ापा सबमें अलग ही भाव जगें,
पर आनंदित हो सबमें मन ,प्रकृति के स्नेहपात में!
बूंद नहीं भावों के मोती झरते इस बरसात में!!

बालकपन में जो गरजे घन, चंचल मन झूमें बूंदों पर,
कागज की नावों पर जैसे, सारे खिलौने हुए न्योछावर !
छाता लेकर भीगें तब तो, बरखा के दिन रात में!!
बूंद नहीं भावों के मोती……………….!

ज्यों तरुणाई में सावन या, भादो की फुहार उठे
मन में उमंगों की लहराते, सोये अबाध बहार उठे
भीगे बिना पूरे कैसे हों, तन मन इस प्रपात में!!
बूंद नहीं भावों के मोती, झरते इस बरसात में! !

यौवन में बरसाती खुशबू, जीवन रस का सार लगे!
प्रियतम संग प्रतिपल वर्षा का, सतरंगी बौछार लगे,
पर विरही मन हो गर प्रिय का, नैन रहें अश्रुपात में
बूंद नहीं भावों के मोती, झरते इस बरसात में! !

ढले यौवन जब हो बुढापा,वर्षा के बादल जब छाते!
यादों के मेले तब आकर,सब किस्सों को फिर दुहराते!!
सराबोर कर जायें गगन घन, जैसे बचपन के मुलाकात में !
बूंद नहीं भावों के मोती, झरते इस बरसात में! !
ले आते हैं मचलती तरंगें, अपने संग सौगात में!!
बूंद नहीं भावों के मोती, झरते इस बरसात में! !!

4 Likes · 6 Comments · 323 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

संवेदना
संवेदना
Khajan Singh Nain
बड़ी मां
बड़ी मां
Nitin Kulkarni
जीवन का किसी रूप में
जीवन का किसी रूप में
Dr fauzia Naseem shad
घर की गृहलक्ष्मी जो गृहणी होती है,
घर की गृहलक्ष्मी जो गृहणी होती है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
उपवास
उपवास
Kanchan verma
रूठे को पर्व ने मनाया
रूठे को पर्व ने मनाया
Suman (Aditi Angel 🧚🏻)
श्रंगार
श्रंगार
Vipin Jain
इक शाम दे दो. . . .
इक शाम दे दो. . . .
sushil sarna
Writing Academic Papers: A Student's Guide to Success
Writing Academic Papers: A Student's Guide to Success
John Smith
तुझसे मिलने के बाद
तुझसे मिलने के बाद
Sakhi
बदलाव
बदलाव
Shyam Sundar Subramanian
सामाजिक कविता: बर्फ पिघलती है तो पिघल जाने दो,
सामाजिक कविता: बर्फ पिघलती है तो पिघल जाने दो,
Rajesh Kumar Arjun
4596.*पूर्णिका*
4596.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
व्यक्ति कितना भी बड़ा क्यों न हो जाये
व्यक्ति कितना भी बड़ा क्यों न हो जाये
शेखर सिंह
प्रेमागमन / मुसाफ़िर बैठा
प्रेमागमन / मुसाफ़िर बैठा
Dr MusafiR BaithA
सत्यमेव जयते
सत्यमेव जयते
Ghanshyam Poddar
जिन्हें देखना कभी जुनून था,
जिन्हें देखना कभी जुनून था,
हिमांशु Kulshrestha
अनुराधा पौडवाल तथा कविता पौडवाल द्वारा आदि शंकराचार्य द्वारा
अनुराधा पौडवाल तथा कविता पौडवाल द्वारा आदि शंकराचार्य द्वारा
Ravi Prakash
जो व्यक्ति  रथयात्रा में रथ पर विराजमान श्री कृष्ण, बलराम और
जो व्यक्ति रथयात्रा में रथ पर विराजमान श्री कृष्ण, बलराम और
Shashi kala vyas
..
..
*प्रणय*
इस राह चला,उस राह चला
इस राह चला,उस राह चला
TARAN VERMA
गुनगुनाने लगे
गुनगुनाने लगे
Deepesh Dwivedi
वक्त निकल जाने के बाद.....
वक्त निकल जाने के बाद.....
ओसमणी साहू 'ओश'
गणेश जी पर केंद्रित विशेष दोहे
गणेश जी पर केंद्रित विशेष दोहे
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
प्यार समंदर
प्यार समंदर
Ramswaroop Dinkar
औरत की अभिलाषा
औरत की अभिलाषा
Rachana
वो इंतजार ही क्या जो खत्म हो जाए……
वो इंतजार ही क्या जो खत्म हो जाए……
shabina. Naaz
सुर लगे न लगे गीत गाते रहना चाहिए
सुर लगे न लगे गीत गाते रहना चाहिए
Neerja Sharma
गुरु को नमन
गुरु को नमन
पूर्वार्थ
**पर्यावरण दिवस **
**पर्यावरण दिवस **
Dr Mukesh 'Aseemit'
Loading...