बरसात के बादल
ऐ बादल दूर गगन के
जरा धरती पर आ बरस
जर्रा -जर्रा सूखा धरती का
कुछ तो दिखा तरस
रोम -रोम जलता है
दावानल सा दहकता है
कोई तो बादल ऐसा आये
तन को शीतल कराए
जल जलाशय सूखे है
हर ओर प्यासे कुएँ है
बादल एक ऐसा आये
प्यास मेरी बुझायें
तपती धरती है ऐसी
जैसे चढ़ी हो ज्वर की त्यौरी
पानी को तरसे सब जन
कोईतो मेघ ऐसा आये
ऐ बादल देखूँ तुझको ऐसे
जैसे हो साँसों का बँधन
हर वक्त रहे आस तेरी
कभी तो आ प्यास बुझा दें