ताटंक कुकुभ लावणी छंद और विधाएँ
तुम्हीं से मेरी जिंदगानी रहेगी।
तुम्हें जब भी मुझे देना हो अपना प्रेम
अनचाहे अपराध व प्रायश्चित
ढूंढ रहा है अध्यापक अपना वो अस्तित्व आजकल
■ मीठा-मीठा गप्प, कड़वा-कड़वा थू।
💐अज्ञात के प्रति-131💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
विचार, संस्कार और रस [ दो ]
*खुद ही लकीरें खींच कर, खुद ही मिटाना चाहिए (हिंदी गजल/ गीति