बरसात के दोहे
उमड़ -घुमड़ कर बादल गरजे,हवा चले मतवाली,
मेघों में पानी भर कर, बरखा आने वाली|
लहर-लहर हिलकोरे लेती,पत्ता-पत्ता झूमें,
बारिश की रिमझिम में,पंछी डाली-डाली घूमें|
ताल तलैया पूर्ण हो गये,नदियाँ कल -कल बहती,
चातक की भी प्यास बुझ गयी,सीपी भीतर मोती|
झम-झम पानी मे कूद -कूद कर नाचें गुडिया रानी,
तन-मन दोनों हल्का करता, ये बारिश का पानी|
तपती धरती की पीड़ा को,जब आसमान सुनता है,
बूँद- बूँद पानी की लेकर,मेघों संग झुकता है ||