जाओ तेइस अब है, आना चौबिस को।
*ससुराल का स्वर्ण-युग (हास्य-व्यंग्य)*
गरीबों की झोपड़ी बेमोल अब भी बिक रही / निर्धनों की झोपड़ी में सुप्त हिंदुस्तान है
जीतना अच्छा है,पर अपनों से हारने में ही मज़ा है।
रोशनी से तेरी वहां चांद रूठा बैठा है
* श्री ज्ञानदायिनी स्तुति *
तूझे क़ैद कर रखूं ऐसा मेरी चाहत नहीं है
वज़्न -- 2122 1122 1122 22(112) अर्कान -- फ़ाइलातुन - फ़इलातुन - फ़इलातुन - फ़ैलुन (फ़इलुन) क़ाफ़िया -- [‘आना ' की बंदिश] रदीफ़ -- भी बुरा लगता है
खांचे में बंट गए हैं अपराधी
पहाड़ चढ़ना भी उतना ही कठिन होता है जितना कि पहाड़ तोड़ना ठीक उस
कविता: जर्जर विद्यालय भवन की पीड़ा
ये रात है जो तारे की चमक बिखरी हुई सी
मजबूरियां रात को देर तक जगाती है ,
वक्त का सिलसिला बना परिंदा
तुम में और मुझ में कौन है बेहतर
मची हुई संसार में,न्यू ईयर की धूम