बनारस…!
मैंने चुना बनारस हो जाना
जबकि कितने शहर मुझमे
खोना चाहते थे,
गंगा सा पवित्र चरित्र किसी का नहीं
मगर सब गंगा मैया की
गोद में सोना चाहते थे,
सुकून की खोज में,
भागदौड़ भरी इस जिंदगी से निकल,
हम भी वाराणसी की गलियों में
खोना चाहते थे,
इश्क़ क्यों न हो उस शहर से
जिस शहर में
मेरे भोले का वास रहता है
हर कोई जिसे काशी विश्वनाथ मंदिर कहता है,
मेरे लिए किसी बनारस की उस सुन्दर सी
कविता से हो तुम
जिसे कोई बनारसी
अत्यंत प्रेम भाव से रच देता है…!
~ गरिमा प्रसाद 🥀