बदल कर टोपियां अपनी, कहीं भी पहुंच जाते हैं।
कभी हिन्दू, कभी मुस्लिम, कभी ईसाई टोपी है।
पहनते हैं कभी पगड़ी, अदा इनकी अनोखी है।।
न ईश्वर से इन्हें मतलब,न अल्ला से ही मतलब है।
न सिख ईसाई से मतलब, इन्हें वोटों से मतलब है।।
कभी मंदिर में जाते हैं, कभी मस्जिद में जाते हैं।
बदल कर टोपियां अपनी, कहीं भी पहुंच जाते हैं।।
कभी भंडारे में जाते हैं, कभी अफ्तारी कराते हैं ।
कभी पीते पवित्र जल हैं, कभी लंगर में जाते हैं।।
बात भाईचारे की करते हैं, अंदर छुरियां चलाते हैं।
बांट फिरकों में कौमें, यही दंगे भी कराते हैं।।
सत्ता संप्रदाय है इनका, कुर्सी का ध्यान करते हैं।
सेवा से नहीं मतलब, केवल ढोंग करते हैं।।
सुरेश कुमार चतुर्वेदी