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19 Sep 2020 · 1 min read

बदलते रिश्ते

वो स्वार्थ आसानी से समझ में आता है
उसमें लिपटा मतलब का जब प्यार नज़र आता है
कोई तो चाल है इसके पीछे
नही तो भला कोई दुश्मन को गले लगाता है ?
इतना अपनापन तो अपना भी ना दे पाये
जितना ये शातिर मुफ्त में दे जाता है ,
कुछ तो छिपा है इसके इस के पीछे
लगता है ये रिश्तों के नाम बदलना चाहता है ?
कभी जो दुश्मन हुआ करता था
क्या आज वो रिश्तेदार होना चाहता है ?

स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 17/09/2020 )

Language: Hindi
2 Likes · 2 Comments · 297 Views
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