बदलते रिश्ते
वो स्वार्थ आसानी से समझ में आता है
उसमें लिपटा मतलब का जब प्यार नज़र आता है
कोई तो चाल है इसके पीछे
नही तो भला कोई दुश्मन को गले लगाता है ?
इतना अपनापन तो अपना भी ना दे पाये
जितना ये शातिर मुफ्त में दे जाता है ,
कुछ तो छिपा है इसके इस के पीछे
लगता है ये रिश्तों के नाम बदलना चाहता है ?
कभी जो दुश्मन हुआ करता था
क्या आज वो रिश्तेदार होना चाहता है ?
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 17/09/2020 )