Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
7 Feb 2024 · 3 min read

बढ़ती उम्र के साथ मानसिक विकास (बदलाव) समस्या और समाधान

प्रकृति से हम सब भलीभाँति वाकिफ़ है। और हम सब यह भी जानते है कि बदलाव प्रकृति का नियम है। बदलाव कि सीढ़ी पर चलकर ही आज हम सब विकास की इस अवस्था तक यहाँ पहुंचे है। लेकिन इस निरंतर चलने वाली प्रक्रिया मे कुछ बदलाव ऐसे भी होते है, जो हमारे शरीर मे होते तो है लेकिन हमे कभी भी प्रत्यक्ष रूप से दिखाई नहीं पड़ते, और इस तरह इन सबको समाज के द्वारा नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है। यहाँ पर समाज शब्द से पर्याय उन सभी संस्थाओ (परिवार, विधयालय इत्यादि) से है जो कि समाज के अंतर्गत आती है।
अगर हम एक मनुष्य के जन्म से लेकर मुत्यु के संदर्भ मे बदलाव शब्द कि बात करे तो हम “ऐरिक्शन” के मनोसामाजिक विकास सिद्धान्त कि वो आठों अवस्थाओं को नाकार नहीं सकते, बदलाव (विकास) कि जिन प्रक्रिया से होकर हम सब गुजरे है। विकास की इन सभी आठ अवस्थाओं मे ऐरिक्शन ने यह बताने का प्रयास किया कि एक शिशु कि बढ़ती उम्र के साथ उसमे शारीरिक, तथा मानसिक अवस्था मे किस तरह के बदलाव होते है। इस दौरान उसके शारीरिक बदलाव (विकास) कि अवस्थाओं को आसानी से पढ़ लिया जाता है, लेकिन इसके उलट उम्र के हरेक पड़ाव मे एक बालक द्वारा उसकी मानसिक अवस्थाओं को पढ़ पाना आज भी एक पहेली है, या फिर कह सकते है कि समस्याओं को जान कर भी हम सब अंजान बने बैठे है। क्योंकि, आज तक हमें कभी कोई समस्या लगी ही नहीं। या फिर कहे कि हम समस्याओं पर खुलकर बाते करना ही नहीं चाहते। जिसकी वजह से समस्या जस की तस बनी हुई है।
शिशु की बढ़ती उम्र के साथ आने वाली समस्याओं का समाधान करना आवश्यक होता है। “ऐरिक्सन” के अनुसार समस्या कोई संकट नहीं होती है, बल्कि संवेदनशीलता और सामर्थ्य को बढ़ाने वाला महत्वपूर्ण बिन्दु होती है। समस्या का व्यक्ति जितनी सफलता के साथ समाधान करता है उसका उतना ही अधिक विकास होता है, या फिर कहे कि जीवन मे सफल होने कि संभावनाएं और अधिक बढ़ जाती है।
इसी तरह “ऐरिक्शन” के मनोसामाजिक विकास सिद्धान्त की पाँचवी अवस्था “पहचान बनाम पहचान भ्रान्ति” जिसे समान्य तौर पर “तूफान की अवस्था” भी कहा जाता है। इस अवस्था मे किशोर अपने जीवनकाल के उस पड़ाव से गुज़रता है जहां उसे ऐसे प्रश्नों या स्थिति का सामना करना पड़ता है। जिससे की वह अभी तक अनभिज्ञ था। जैसे कि वो कौन है? किससे संबंधित है? और उनका जीवन कहां जा रहा है? किशोर अवस्था के इस दौर मे बच्चों को अपने से बड़े (अभिभावक, शिक्षक आदि) के सहयोग और मार्गदर्शन की बहुत अधिक अवश्यकता होती है। अगर सही समय पर किशोर की मानसिक अवस्था मे होने वाले परिवर्तन को समाज के द्वारा पढ़ या समझ लिया जाता है तो किशोरों के अंदर चल रही उधेड़बुन/या उनकी समस्याओं का निदान करना संभव हो जाता है।
किशोरावस्था की सीढ़ियों के अंतिम चरण के पश्चात एक किशोर “ऐरिक्शन” के मनोसामाजिक विकास सिद्धान्त की उस छटवी युवा अवस्था “आत्मीयता बनाम अलगाव” के प्रारम्भिक वर्षों मे प्रवेश करता है, जहां वह समाज मे स्वयं को खोजता है, एक व्यक्ति को स्वयं को किसी और (व्यक्ति में) खोजना पड़ता है। यदि ऐसा नहीं होता है तो अलगाव की भावना उत्पन्न हो जाती है। अगर समाज के द्वारा किसी व्यक्ति को नकार दिया जाता है तो उसके भीतर हीन भावना उत्पन्न होने लगती है। और उसके भीतर नकारात्मक भाव उत्पन्न होने लगते है।
जन्म से लेकर मुत्यु तक के विभिन्न चरणों में आने वाली समस्याओं का उचित समाधान हमेशा सकारात्मक रूप से किया जाना चाहिए। और यह तभी संभव है जब बदलाव को स्कारात्मक रूप से स्वीकार करें तथा हम सब मिलकर आशावादी दृष्टिकोण अपनाए। क्योंकि हम सब जीवन के उस पड़ाव से गुज़र चुके है। जिस पड़ाव से वर्तमान पीढ़ी गुज़र रही है। जीवन की हर स्थिति में सभी लोगों के साथ एक जैसा व्यवहार संभव नहीं है। लेकिन उससे पूर्व यह भी ध्यान रखना होगा कि बदलती हुई सामाजिक परिस्थितियों के अनुसार समायोजन करके ही उत्तम एवं स्वस्थ व्यक्तित्व का निर्माण किया जा सकता है

Language: Hindi
2 Likes · 451 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

*बादल छाये नभ में काले*
*बादल छाये नभ में काले*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
जीने को ज़िन्दगी के हक़दार वही तो हैं
जीने को ज़िन्दगी के हक़दार वही तो हैं
Dr fauzia Naseem shad
कत्थई गुलाब-शेष
कत्थई गुलाब-शेष
Shweta Soni
*वैदिक संस्कृति एक अरब छियानवे करोड़ वर्ष से अधिक पुरानी है:
*वैदिक संस्कृति एक अरब छियानवे करोड़ वर्ष से अधिक पुरानी है:
Ravi Prakash
संवेदनहीन
संवेदनहीन
अखिलेश 'अखिल'
A Departed Soul Can Never Come Again
A Departed Soul Can Never Come Again
Manisha Manjari
क्या पाना है, क्या खोना है
क्या पाना है, क्या खोना है
Chitra Bisht
कुछ अजीब है यह दुनिया यहां
कुछ अजीब है यह दुनिया यहां
Ranjeet kumar patre
बोलो जय जय सिया राम
बोलो जय जय सिया राम
उमा झा
‘प्रकृति से सीख’
‘प्रकृति से सीख’
Vivek Mishra
ये राम कृष्ण की जमीं, ये बुद्ध का मेरा वतन।
ये राम कृष्ण की जमीं, ये बुद्ध का मेरा वतन।
सत्य कुमार प्रेमी
अनजान राहें अनजान पथिक
अनजान राहें अनजान पथिक
SATPAL CHAUHAN
दिलाओ याद मत अब मुझको, गुजरा मेरा अतीत तुम
दिलाओ याद मत अब मुझको, गुजरा मेरा अतीत तुम
gurudeenverma198
खिलजी, बाबर और गजनवी के बंसजों देखो।
खिलजी, बाबर और गजनवी के बंसजों देखो।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
ध्येय बिन कोई मंज़िल को पाता नहीं
ध्येय बिन कोई मंज़िल को पाता नहीं
Dr Archana Gupta
*बेवफ़ा से इश्क़*
*बेवफ़ा से इश्क़*
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
मेरे प्रिय पवनपुत्र हनुमान
मेरे प्रिय पवनपुत्र हनुमान
Anamika Tiwari 'annpurna '
बढ़ती तपीस
बढ़ती तपीस
शेखर सिंह
ना तो कला को सम्मान ,
ना तो कला को सम्मान ,
ओनिका सेतिया 'अनु '
"वफादार"
Dr. Kishan tandon kranti
ब्रह्म तत्व है या पदार्थ या फिर दोनों..?
ब्रह्म तत्व है या पदार्थ या फिर दोनों..?
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
नशा छोडो
नशा छोडो
Rajesh Kumar Kaurav
कृष्ण हो तुम
कृष्ण हो तुम
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
दुर्योधन की पीड़ा
दुर्योधन की पीड़ा
Paras Nath Jha
4089.💐 *पूर्णिका* 💐
4089.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
..
..
*प्रणय प्रभात*
थोड़ा सा आसमान ....
थोड़ा सा आसमान ....
sushil sarna
सुनो न..
सुनो न..
हिमांशु Kulshrestha
परीक्षा का भय
परीक्षा का भय
डॉ राजेंद्र सिंह स्वच्छंद
महाप्रयाण
महाप्रयाण
Shyam Sundar Subramanian
Loading...