बज्जिका के पहिला कवि ताले राम
– बज्जिका के पहिला कवि ताले राम
ताले राम के बारे में कुछ कहे से पहिले हुनका बारे में कुछ जाननाई जरूरी हए कि ताले राम कोन रहत। ताले राम के बारे में डॉ धर्मेंद्र ब्रह्मचारी शास्त्री जे लंगट सिंह कालेज मुज्जफरपुर में 1959 में प्रिंसपल रहथ ऊ अप्पन शोध ग्रंथ -“संत मत का सरभंग सम्प्रदाय “में लिखलन हऽ कि ताले राम सरभंग सम्प्रदाय के एगो सिद्ध संत रहथ।हुनकर जनम लोहार कुल में गांओ सोहरबा -गोनरबा चंपारन जिला में भेल रहे।ऊ सरभंग सम्प्रदाय के सिद्ध संत भिखम राम के शिस्य रहथ। डॉ धर्मेंद्र ब्रह्मचारी शास्त्री अप्पन शोध ग्रंथ में अई बात के उद्धृत कएले छथ कि ताले राम फसली 1262 में पोता गांव में अप्पन अंतिम समाधि लेलन।ई गाओं रून्नीसैदपुर थाना आ जिला सीतामढ़ी में पड़इअ ।अपने सब्भ के जानके अई बात के खुशी होएत कि हमरा गांव के नाओ आई से 60 साल पहिले पोता ताजपुर रहे ।जेकरा 1964 में बदल के पुरखा के नाम पर तिलक ताजपुर कएल गेल।आइओ ताले राम के समाधि स्थल के उहे मान्यता प्राप्त हए जे हनुमान जी ,राम जी आ कोनो देवी -देओत के हए।आइओ गांव के लोग कोनो शुभ काम शुरू करे से पहिले “जय ताले राम “बोलिए के अप्पन काम शुरू करई छथ।आइओ हमरा गांओ में ताले राम के महिमा जन -जन के जुबान पर हए। फ़सली संवत् आ ई सन् में 593 साल के अंतर हए।अई हिसाब से फसली 1262 के मतलब भेल ई सन् 1855 ।कहे के माने ई कि ताले राम 1855 में हमरा गांओ पोता उर्फ़ पोता ताजपुर में 110 साल के उमीर में अंतिम समाधि लेलन। हमरा परबाबा स्मृति शेस बाबू तिलक सिंह के जनम ई सन् 1840 के हए जे 1923 में स्वर्ग सिधारलन।हुनका सब्भे के कहे अनुसार ताले राम के जनम ई सन् 1745 के आसपास होइअ। ताले राम हमारा गांओ में 1780 के आसपास से आबे लगलन।जब ऊ गांओ में आबथ तऽ हुनकर धुनी बड़का इन्डा के नजदीक बाबा दीना सिंह के दलान में लागे।ओइजमूने गांओ के लोग के जामवारा होए आ लोग सब हुकर भजन कीर्तन अउर स़तसंग में शामिल होअथ। ताले राम निम्मन -निम्मन भजन लिखथ आ ओकरा गएबो करथ। गांव के लोग सब हुनकर लिखल आ गाएल भजन भाओ -विभोर हो के सूने आ हुनका जौरे -जौरे गएबो करे।आइयो हमरा गांव के कुछ बूढ़ -पुरनीआ ताले राम के लिखल भजन के गाएन करइछथ।गांओ के लोग जब समाधि के बारे में हुनका से कुछ जिज्ञासा करथ तऽ उत्तर में ऊ अतने कहथ -” मन मउदह ,चित्त चिताओन तन पोता”।अई सधुकरी भासा के अर्थ आइतक अबूझ हए। हमरा समझ से हुन कहथ हमरा मन में समुद्र लेखा कोनो लहर नऽ उठइअ ।अउर चित्त हर समय चिदाकार रहइअ।आ देह तोरा सब्भे के नजदीक रहइअ।हम बराबर देह में रहके विदेह रहइत हती।
हम ऊपर में अई बात के उद्धृत कइली हऽ कि ताले राम सरभंग सम्प्रदाय में दीक्षित रहथ । सरभंग सम्प्रदाय के बारे में कहल जाइअ कि ई संप्रदाय अघोर संप्रदाय से टूट के बनल हए। आधुनिक अधोर पंथ के संस्थापक के रूप में कीनाराम 1601 -1770 के नाम आदर से लेल जाइअ। हुनका बाद पंथ दू फार में बट गेल।एक फार अघोर पंथ रहल आ दोसर फार सरभंग सम्प्रदाय कहाएल। सरभंग सम्प्रदाय के संस्थापक भीखम राम रहत जे ताले राम के गुरु हरथ। सरभंग सम्प्रदाय के संत मूल रूप से सारन ,चंपारन मुज्जफरपुर, शिवहर, सीतामढ़ी आ वैशाली जिला में पाएल जाइछथ।अई मत के माने वाला संत निर्गुन ब्रह्म के माने वाला होइ छथ।हिनकर रहन -सहन, वेश -वूशा बहुत सादा होइअ।अई मत के माने वाला संत विरक्त आ पारिवारिक दुनू तरह के होइछथ।अई मत के सिद्ध संत में भिखम राम,भीनक राम,टेकमन राम आ ताले राम के नाम आदर से लेल जाइअ । सरभंग मत के संत पारिवारिक जीवन भी व्यतीत करइछथ। सरभंग सम्प्रदाय के संत पंच मकार साधना के सख़्त विरोधी हतन।ई लोग मद्य ,मांस ,मीन, मुद्रा आ मैथुन से पूरा-पूरा परहेज़ रखई छथ । जबकि अघोर पंथ के लोग के लेल पंच मकार साधना अति आवश्यक हए।अई के उलट सरभंगी लोग समाज में रहके निराकार ब्रह्म के उपासना करइ छथ। ताले राम के बारे में कहल जाइअ कि ऊ कए -कए दिन तक निराहार रह के दलान के भीतर समाधि में रह जाथ।जब एना दू -चार दिन बीत जाए तब हुनका लोग दलान के केमारी के झिझिर पीट कऽ समाधि से जगावे।अही सिलसिला में ऊ एक दिन कुछ लोग से कहलन-“तू लोग झिझिर पीट कऽ हमरा समाधि के भंग नऽ करा।अई से तोरा सबके अहित हो जाई।हम अगर एक सप्ताह से बेसी समाधि में रह जाई तऽ हमर एगो चेला सोनफूल दास इहां से आठ -दस कोस पूरब ब्रह्मपुर गांव में रहइअ ओकरे बोला के ले अइहा।ऊ जेना कहतो तेना करिहा।”सरभंग सम्प्रदाय के बारे में इहो कहल जाइअ कि ई लोग इंगला, पिंगला आ सुसुम्ना स्वर के साघना में निपुन होइछथ अही लेल सरभंगी कहल गेलन। कुछ विद्वान लोग अई मत के कबीर मत के नजदीक देखई छथ।ई सब्भे बात तऽ शोध के एगो अलग विसय हए।हम इहां संत ताले राम (1745-1855) के भजन के दूगो वानगी दे रहल हती।अई भजन के अहां सब देखू कि ई भजन आजुक बज्जिका के कतेक नजदीक हए। एक तरह से कह सकइत हती कि ई भजन आजुक बज्जिका भासा में लिखल गेल हए।—
” एक दमरी के मुनिया बेसाहली , नौ दमरी के पिंजरा।
आएल बिलाई छपट लेलक मुनिया , रोए सारी दुनिया।।
अलख डाल पर बइठे मुनिया,खाए जहर के बूटी।
साधु -संगत में परिते रे मुनिया,खइते गेआन के बूटी।।
सगरे नगर ताले घूमि -फिरी अएला, कतहूं न राम नाम सुनिया।
कहे “ताले”सुनू गिरधर जोगी, ई नगर बड़ा हए खुनिया।।
अब ताले राम के दोसर भजन के तासीर देखू –
खेती आ मन जाई जे मन।।टेक।।
उलट पुलट के एतना जोतो,बहुविध नेह लगाई।
सील -संतोस के हेंगा फेरो,ढेला रहे न पाई।।
लोभ -मोह के बथुआ उपजे,जइसे छोह न जाई।
गेआन के खुरपी हाथ में ले लो,सोर रहे न पाई।।
काम -क्रोध के उगे तरंगा,खेत चरन न जाई।
गेआन के सटका हाथ में लेओ,खेत चरन न पाई।।
काट -खोट के घर में लाएब,तऽ पूरा किसान कहाई।
कहे ‘ ताले ‘ सुनु गिरधर जोगी,तब आबागमन नसाई।।
अब आऊ ताले राम के भजन लिखे आ गावे के बारे में कुछ बात कहइत हती।हमर बाबू जी स्मृति शेस विश्वनाथ प्रसाद शर्मा अप्पन किताब -“तिलक ताजपुर इतिहास के आईने में” ताले राम के बारह गो भजन के उद्धृत कएले छथ।ऊ सब्भे भ़जन खांटी बज्जिका भासा में लिखल हए। हमहूं अप्पन शोध किताब -” बज्जिका भासा आ साहित्य के इतिहास” में ताले राम के तीन गो भजन के उद्धृत कइली हऽ जे डां धर्मेंद्र ब्रह्मचारी शास्त्री लिखल शोध ग्रंथ -“संत मत का सरभंग सम्प्रदाय”से लेल गेल हऽ। डॉ धर्मेन्द्र ब्रह्मचारी शास्त्री के शोध ग्रंथ-” संत मत का सरभंग सम्प्रदाय” में ताले राम के बारह गो भजन संकलित हए ।अउर हम अप्पन शोध किताब -“बज्जिका भासा आ साहित्य के इतिहास ” में मगनी राम आ ताले राम के भजन के तुलनात्मक विश्लेसनो कइली हऽ। हमरा समझ से ताले राम (1745-1855) के भजन खांटी बज्जिका में हए जबकि मगनी राम -(उन्नीसवीं शताब्दी)के भजन बज्जिका मिश्रित भारतेन्दु जुग के खड़ी बोली के नजदीक बुझाइअ।
ऊपर हम कह अइली हऽ कि ताले राम फसली 1262 आ ई सन् 1855 में समाधी लेलन।ताले राम केहन सिद्ध संत रहथ ई बात अइसे परमानित होइअ कि जोन दिन ऊ अप्पन अंतिम समाधि लेलन ओई दिन हुनकर चेला सोनफूल दास ब्रह्मपुर गांओ जे हमरा गांओ से आठ -दस कोस पूरब में रहे ऊंहां से बिना कोनो सूचना के आगेलन। हुनका बताएल अनुसार जहां पर अखनी ताले राम के समाधि स्थल हए ऊहां पर हुनका पूरा विधि -विधान से समाधि देल गेल। अउर समाधि के बाहर एगो अखंड दीप आ घुनी जलाएल गेल। सोन फूल दास ऐंही रहके हुनका समाधि के सेवा करे लगलन। हमरा जुआनी तक हुनका समाधि पर एगो अखंड दीप आ घुनी जलल करे। हुनका समाधि के नजदीक एगो पांच बीघा के पोखरी रहे आ ओई मठ में गांओ के लोग के तरफ से साधु- संत के आव -भगत के लेल 22 बीघा जमीन मठ में देल गेल।
अई मठ में ताले राम के समाधि के सिवाए कोनों दवी -देओता के फोटो नऽ हए। अलबत्ता एगो हनुमानी झंडा बराबर फहराइत रहइअ।आइओ भगवत सरूप ताले राम के प्रति खाली हमरे गाओं के लोग के बीच नऽ बल्कि ओजमून के चउगामा के लोग के मन में हुनका प्रति अपार सरधा, सम्मान आ आदर के भाओ हए।
ऊपर लिखल अई सब्भे बात के चरचा हम अप्पन किताब -“बज्जिका भासा आ साहित्य के इतिहास” में कएले हती।एकरा बाद बज्जिका के बौद्ध कवि धर्मपा (छठी शताब्दी)गयाधर (ग्यारहवीं शताब्दी) हलधर दास (सोलहवीं शताब्दी)आ बज्जिका भासा में लिखे वला अउरो कवि लोग के चरचा विस्तार से कएले हती।ई किताब समीक्षा प्रकाशन मुजफ्फरपुर से परकाशित हए।बज्जिका प्रेमी लोग से हमर निहोरा हए कि अई किताब के एक बेर पढ़ू आ पढ़के अपन बहुमूल्य सुझाव हमरा दीऊ । अपने सब्भे के सुझाव के हमरा बेसब्री से इंतजार हए।
उदय नारायण सिंह
कृपा -कु़ज,
बी एम पी 06 दुर्गा स्थान
मुहल्ला -दुर्गा पूरी,मालीघाट
जिला, मुज्जफरपुर, बिहार
पीन कोड -8422002
6200154322