बचा लो जरा -गजल
लुटी हुई तकदीरों को बचा लो जरा ,
इन हाथों की लकीरों को बचा लो ज़रा।
मैं गुजर रहा हूँ मुद्दत से इस कशमकश में,
में खो न जाऊ भीड़ में मुझे पा लो ज़रा।
मुस्कराते चेहरे के पीछे का दर्द ,
अपनी इस हक़ीकत को छुपा लो ज़रा।
नम आँखों में बसी यादें हुई नहीं धुंधली ,
इन बहते आंसुओं को छुपा लो ज़रा।
बेखयाली के समुन्दर की गहराई बहुत ,
यादों के बहाव में डुबकी लगा लो ज़रा।
जमा की है अरसों से जो इश्क की दौलत ,
इस बेशकीमती दौलत को बचा लो ज़रा।
भंवर में फंसी कश्ती को दिखता नहीं किनारा ,
नाउम्मीद की आँधियों से बचा लो ज़रा।
‘असीमित’ है ये ख्वाहिशें, जंजीरों में बंधी ,
इन्हें तोड़ने का कोई सबब सिखा दो ज़रा।
स्वरचित -डॉ मुकेश ‘असीमित’