बचपन
ढूँढ रही हूँ बचपन प्यारा,
था वो नटखट बड़ा दुलारा।
दादा शाम को घर आते थे,
थैले में फल भरकर लाते थे।
मिलकर हम सब भाई – बहन,
बाँट – छाँटकर फल खाते थे।
होता था वो समय न्यारा।
ढूँढ रही हूँ……!!
सुनते थे रोज नयी कहानी,
कहती थीं जिसे दादी – नानी।
चाचा – बुआ थे लाड़ लड़ाते,
मामा – मौसी घुमाने ले जाते।
मौसम था वो मस्त हमारा।
ढूँढ रही हूँ…….!!
हम सब बच्चे झुँड बनाते,
नये – नये नित खेल रचाते।
मिलकर करते थे शैतानी,
बातों में भोलापन, नादानी।
अद्भुत था संसार हमारा।
ढूँढ रही हूँ …….!!
दिनांक :- ०९.०३.२०२१.