बचपन-सा हो जाना / (नवगीत)
चंग,गुलेलें,
गुल्ली-डंडा
और रूठना, गाना ।
बहुत कठिन है
इस पड़ाव में
बचपन-सा हो जाना ।
सीत भात का
छपा गाल पर
और हाथ में कट्टू ।
मनस-संपदा
पाकर पूरी
यों हो जाना लट्टू ।
गलमाला को
तोड़ दाँत से
मनकों को बिखराना ।
कभी अँगूठा
देना मुँह में
कभी शर्ट की कालर ।
भूत,भविष्यत्-
मुक्त, झूमती
वर्तमान की झालर ।
कभी-कभी कुछ
गाकर यों ही
ख़ुद मन को समझाना ।
इस पल कुट्टी,
उस पल चुम्मी,
रो-रो कर हँस लेना ।
क्या ऊधौ से,
क्या माधौ का,
इन्हें न लेना-देना ?
महाशून्य के
आनंदित क्षण
में, विचार खो जाना ।
बहुत कठिन है
इस पड़ाव में
बचपन-सा हो जाना ।
चंग,गुलेलें,
गुल्ली-डंडा
और रूठना, गाना ।
बहुत कठिन है
इस पड़ाव में
बचपन-सा हो जाना ।
०००
— ईश्वर दयाल गोस्वामी
छिरारी (रहली),सागर
मध्यप्रदेश ।
मो. – 8463884927