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23 Dec 2021 · 1 min read

फिर भी बाबू जी कहते हैं ..

शूल सजे पथ , घायल हर पग
बेबस पीड़ा, साथ-साथ है ।
फिर भी बाबू जी कहते हैं..
यहाँ तो सब कुछ ठीक-ठाक है!

कुएं की सूखी दीवारें भी
चीत्कारती मिलती हैं..
सूखी शाखें नीम की अनगिन
बाट जोहती सिसकी हैं।

पिछली बार बसंत गया जो
लौट कहां आ पाया है…
सिन्दुरी शामों से उठता
अब सपनों का साया है!

नन्हें बच्चे भूख से मिटते
नहीं हाथ में स्लेट–चाक है!
फिर भी बाबू जी कहते हैं..
यहां तो सब कुछ ठीक-ठाक है..

हाथों की रेखा–रेखा में
अनुभव दर्द भरे लौटा है..
दृग के झिलमिल से कोनों पर
आकृति बन बचपन चौंका है!

था उजास जिनकी वाणी से
वो गूंगे बन डरवाये है..
फटी–फटी आंखों में उनकी
लहू के टुकड़े भर आये हैं।

सोंधेपन की खुशबू गुम है
निर्धनता से ढका ताख है
फिर भी बाबू जी कहते हैं
यहां तो सब कुछ ठीक-ठाक है।

स्वरचित
रश्मि लहर
लखनऊ

Language: Hindi
186 Views
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