फितरत
फितरत है मेरी सांप की,मानवता की ढाल है।
जहरीला मेरा दंश है, प्रकृति बेहाल है।
प्रकृति की लाश पर ,प्रगति का मंच है।
बुद्धिमत्ता श्रेष्ठ है ,फितरत ही प्रपंच है।
वेश भूषा , विचार,ज्ञान और शिक्षा से, दिखते योगी हैं।
दिनचर्या है भोग की ,क्योंकि ,फितरत से भोगी हैं।
वर्तमान की सुध नहीं,भविष्य की करते तैयारी।
दिखते विकसित हैं हम,पर महामारी फितरत हमारी।
त्योहार हमारे बदले हैं,दीपक से नाता खंड है।
पटाखों में प्रेम जागा, विनाश ये प्रचंड है।
कुर्बानी के नाम पर ,बकरे का मस्तक खंड है।
त्याग, प्रेम की आड़ है, क्योंकि फितरत ही पाखंड है।
मेधा तो हमारी ,बस परंपराओं का घर है।
परिवर्तन से भय है, क्योंकि फितरत हमारी डर है।
कहने को हम श्रेष्ठ हैं, प्रकृति में सबसे ज्येष्ठ हैं।
विनाश यू ना कीजिए ,विध्वंश को, ना न्योता दीजिए।
फितरत से बंधन तोड़िए ,अब प्रेम दिखला दीजिए।
अपनी उज्जवल चेतना का परिचय सबको दीजिए।
फितरत के काले धागे में, प्रेम मोती पिरो दीजिए।
फितरत से बंधन तोड़िए,अब प्रेम दिखला दीजिए।
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