फ़ितरत अपनी-अपनी
“फ़ितरत अपनी-अपनी”
कोई हसंता है तो कोई हंसाता है,
कोई रोता है तो कोई रुलाता है,
कोई भगाता है तो कोई बुलाता है,
कोई फंसता है तो कोई फंसाता है !
यहां सबकी फ़ितरत अपनी-अपनी !!
कोई बचाता है यंहा कोई मारता है
कोई समझाता है तो कोई डांटता है
कोई गले लगाता कोई दुत्कारता है,
कोई पुचकारता कोई फटकारता है !
यहां सबकी फ़ितरत अपनी-अपनी !!
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कोई लड़ता है तो कोई लड़ाता है,
कोई उड़ता है तो कोई उड़ाता है,
कोई पकड़वाता है कोई छुड़ाता है
कोई सुनता है तो कोई सुनाता है !
यहां सबकी फ़ितरत अपनी-अपनी !!
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कोई सीखता, तो कोई सिखाता है,
कोई सिर्फ खाता कोई खिलाता है,
कोई बिछाड़े यंहा कोई मिलाता है,
कोई पीता मुफ्त में कोई पिलाता है !
यहां सबकी फ़ितरत अपनी-अपनी !!
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किसी का चुरता है, कोई चुराता है,
किसी का घटता है, कोई बढ़ाता है,
कौन विनाशक यहां कौन विधाता है,
सब रंग समय इसमें यही जमाना है !
यहां सबकी फ़ितरत अपनी-अपनी !!
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स्वरचित मौलिक : डी के निवातिया