“फसलों के राग”
![](https://cdn.sahityapedia.com/images/post/ff6b39a2a78330e311423deb89892add_8facca4ed707ec0ae4915c09880a825b_600.jpg)
“फसलों के राग”
खेतों की भूख का मौसम
समय-समय की प्यास,
कड़ाके की ठण्ड से ठिठुरती
पूस की रात।
यूँ ही नहीं बुझती कभी
पेट की आग,
यूँ ही नहीं गूँजते कभी
फसलों के राग।
“फसलों के राग”
खेतों की भूख का मौसम
समय-समय की प्यास,
कड़ाके की ठण्ड से ठिठुरती
पूस की रात।
यूँ ही नहीं बुझती कभी
पेट की आग,
यूँ ही नहीं गूँजते कभी
फसलों के राग।