फकीर
वह सच्चे अर्थ में फकीर था। लंगोट के अतिरिक्त वह एक गमछा और बाल्टी साथ रखता था। एक बार वह जंगली रास्तों से गुजर रहा था। उन्हें जोरों की प्यास लगी। उन्होंने देखा कि कुछ जंगली जानवर एक गड्ढे से पानी पी रहे हैं।
वह फकीर एक पेड़ की छाया में गमछा और बाल्टी को छोड़कर पानी पीने आगे बढ़ा, लेकिन पानी सतह से बहुत नीचे था। उन्हें आश्चर्य हुआ कि जंगली जानवर इतने गहरे गड्ढे से पानी कैसे पी रहे थे?
तभी अकस्मात उन्हें आवाज सुनाई दी कि उन मूक जानवरों के पास कुछ न था, मगर तुम्हारे पास तो बाल्टी और गमछा है।
वह फकीर बाल्टी और गमछा को छोड़कर आगे बढ़ने लगा। उसी समय आवाज आई कि तुमने अब बाल्टी और गमछा का मोह भी छोड़ दिया। तुम अब बिना सहारे के ही जी सकते हो, यह यकीन ही सच्ची फकीरी है। अब कोई संकट तुम्हें परास्त नहीं कर सकता।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड प्राप्त
हरफनमौला साहित्य लेखक।