“पढ़ेगा इंडिया, तभी तो बढ़ेगा इंडिया”
“अरी ओ मिठु” कहाँ गई? ना जाने कहाँ भागी रहती है यह लड़की भी?
“किरण”, क्या तुमने मिठु को देखा? ना जाने, कहाँ गई होगी?
आप, क्यों इतना मिठु के पीछे पड़े रहते हैं? आखिर, एक ही तो बेटी है हमारी और वैसे भी, बच्ची ही तो है अभी वो। गई होगी कहीं खेलने।”
हाँ-हाँ, आज पूरे 8 साल की हो गई है मिठु, और तुम उसे बच्ची कहती हो?
“घर का चूल्हा-चौका अच्छे से सिखाना शुरू करो अब इसे, कहीं नाक ना कटाए हमारी पराए घर जाकर। और हाँ, आज से मैं उसे खेतों में भी लेकर जाऊँगा।” ना जाने खेतों में कब हाथ बंटाना शुरू करेगी……? दूसरे घर जाकर क्या खेती नहीं करेगी?
खैर, तुम देखो उसे अंदर, कहीं छिप कर ना बैठी हो और मैं पशुओं को पानी पिलाकर आता हूँ।
“सुरिंद्र”, अपनी गौशाला की ओर बढ़ा………और गौशाला में घुसते ही………….
“अरे मिठु! तू यहाँ?” यहाँ क्या कर रही है? और मुझे देख कर तूने पीछे क्या छिपाया? दिखा मुझे, दिखा………।
यह क्या है?
बाबू जी, किताब है। वो, “मितु” दीदी के घर से लाई थी पढ़ने के लिए तो………।
तो अब तुझे, घर का काम और घर की खेती, यह किताबें सिखाएंगी?
पिछले दो साल से समझा रहा तुझे कि यह किताबें कुछ नहीं देंगी। ना खाना और ना पानी। फिर भी इनपर समय बर्बाद करती रहती है। और तुझे सिखाता कौन है पढ़ना, हैं?
“वो बाबू जी……., मैं जब अपनी सहेलियों के पास खेलनी जाती हूँ तो उनसे थोड़ा बहुत सीख लिया करती हूँ और अभी तो मैं बस…. तारों के बारे में पढ़ रही थी।”
बन्द कर यह किताब बगैरा पढ़ना और आज मेरे साथ चल कर खेती सीख। तारों के बारे में जानकर क्या करेगी? तेरा हाथ बंटाने, आसमान से क्या तारे आएँगे? “बड़ी आई तारों के बारे में जानकारी लेने वाली।” और अगर दोबारा से यह किताब मेरे घर में मुझे दिखी, तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा, सुन लिया??
“जी, बाबू जी..!” इतना कह कर मिठु ने वह किताब, वहीं गौशाला में एक किनारे छुपा दी और बाबू जी को गौर से देखने लगी।
अब खड़ी-खड़ी मेरी शक्ल क्या देख रही? जा, बैलों को खेतों में ले जा, मैं कुछ देर बाद आया। कल बारिश हुई है तो हमें आज ही, सारे खेत जोतने हैं, समझ गई?
“जी, बाबू जी….।”
मिठु रास्ते में चलती हुई तारों के बारे में सोचे जा रही थी……, “यह तारे चमकते कैसे होंगे? क्या भगवान ने सेल डाले होंगे इनके अंदर या भगवान रिमोट से चलाते होंगे इन्हें…!!” मैं जल्दी से खेतों में काम करके, मितु दीदी के घर पढ़ने चली जाऊँगी और तारों के बारे में सब कुछ पढूँगी!
यह कह कर मिठु ने, अपने बाबू जी से खेतों का थोड़ा काम सीखा, और काम निपटाने के बाद, अपने बाबू जी से कहने लगी, “बाबू जी, आज मितु दीदी के घर कोई आयोजन है। उन्होंने मुझे रात के खाने पर भी बुलाया है, तो क्या, मैं जा सकती हूँ?”
हाँ, “पर हमें तो ऐसे किसी आयोजन के बारे में किसी ने नहीं बताया!”
वो……., “मितु दीदी” ने अपने जन्मदिन में खाना नहीं खिलाया था किसी को, तो आज उन्होंने सिर्फ़ मुझे, दित्तु, कित्तु और परी को ही खाने पर बुलाया है।
“ठीक है – ठीक है, जा आना।”
यह सुन, मिठु, तुरन्त गौशाला पहुँची और वहां से किताब लेकर, अपनी मितु दीदी के घर जा पहुँची।
देर शाम, मिठु की पूजा चाची, मिठु को ढूंढती हुई, मितु के घर जा पहुँची और मिठु को घर ले जाने के लिए कहनी लगी।
“मिठु”, तुझे घर में बुला रहे हैं। बैल बीमार हो गया है। उसे पास के गांव लेकर जाना पड़ेगा।
मिठु, “भागी-भागी घर पहुँची और अपने बाबू जी के साथ अंधेरे में ही, पास के दूसरे गांव में, पशु औषधालय में बैल को लेकर पहुँच गई।” आपातकालीन ड्यूटी में तैनात डॉक्टर ने बैल को टीका लगाया और घर ले जाने को कह दिया…।
यह सब कुछ मिठु ने बहुत गहनता से देखा और रास्ते मे लौटते वक्त अपने बाबू जी से पूछने लगी कि, “हमारे गांव में पशु औषधालय क्यों नहीं है?” हमारे गांव के कितने बीमार पशुओं को रोजाना इतना सफर करके यहाँ आना पड़ता है?
मिठु के बाबू जी ने कहा, कह तो तुम ठीक रही हो बेटी, लेकिन, इन सुख-सुविधाओं के लिए भला कौन पैरवी करेगा हमारे गांव की? “राजेश” प्रधान तो है, लेकिन उसके लिए तो “काला अक्षर भैंस बराबर” वाली बात है और साथ में वह दूसरे गांव के प्रधान की जी-हुजूरी में लगा रहता है। “तो कहाँ कुछ होगा हमारे गांव में!”
खैर, “घर आ गया है, छोड़ इन बातों को।”
अब पता नहीं बारिश भी कब होगी और कैसे फसल होगी, खर्चे कैसे निकलेंगे? तेरा व्याह तक कुछ रकम जुड़ पाएगी या नहीं! कुछ समझ नहीं आता।
चल, तू सो जा पास वाले कमरे में जाकर।
मिठु चटाई बिछाकर लेट गयी और सोचने लगी, “अगर आज हमारा बैल बीमार नहीं होता तो मैं तारों के बारे में सब पढ़ लेती।” अब कल पढ़ने के लिए, क्या बहाना लगाकर मितु दीदी के घर जाऊँगी! यही सोचते-सोचते उसकी आंख लग गयी।
अगले दिन बारिश नहीं होने के कारण और सूखे के कारण, खेत मे उतना काम नहीं था। तो मिठु ने घर का काम निपटा कर अपनी मितु दीदी के घर जाने के लिए अपने बाबू जी से कहा, “बाबू जी, मितु दीदी के घरवाले कुछ दिनों के लिए शहर जा रहे हैं, तो दीदी ने मुझे वहीं रहने को बोला है।” तो मैं रह लूँ ना दीदी के घर?
हाँ, पर पहले तेरी माँ, मितु के घर जाकर पूरा पता करेगी, तभी भेजूँगा, ऐसे नहीं।
यह सुन मिठु डर गई……. और अपनी माँ के पास जाकर थोड़ी हिचकिचाती हुई कहने लगी, “माँ वो……….. मैंने बाबू जी से झूठ कहा था, दरअसल मैं मितु दीदी के घर पढ़ने जाया करती हूँ।”
“अरे वाह!” यह सुन, मिठु की माँ बहुत खुश हुई और मिठु से कहने लगी, “तू अपने बाबू जी से छुपा तो रही है, लेकिन जिस दिन इन्हें पता लगा ना, तो तेरी और मेरी, हम दोनों की खैर नहीं।” फिर भी तू जा..…….., मैं सम्भाल लूंगी सब!
अपनी माँ की बात सुन, मिठु, अपनी दीदी के घर जा पहुँची। और दीदी के घर ही बहुत देर तक पेड़ के नीचे बैठ कर तारों के विषय में सब पढ़ने लगी। मिठु को यह सब कुछ अच्छा लग रहा था!
कुछ दिनों बाद, गांव में एक सरकारी संस्था, बच्चों के “मानसिक विकास” के सर्वेक्षण के लिए आई। यह जानने के लिए, संस्था ने घर-घर जाकर, बच्चों के ज्ञान की परख की। शाम तक संस्था ने, भरी सभा में ऐलान किया कि इस गांव से हमने “मिठु” नाम की लड़की का चयन किया है, जिसे आगे की पढ़ाई में हमारी संस्था पूरा सहयोग करेगी। इन छोटी-छोटी कोशिशों से ही तो आखिर, “पढ़ेगा इंडिया, और बढ़ेगा इंडिया!”
यह सुन, सभी हैरान भी हुए और खुश भी। लेकिन सुरिंद्र, “यह सब सुनकर बहुत उदास हुआ और गुस्से से मिठु की ओर देखने लगा। थोड़ी देर बाद उसने भरी सभा में मिठु को पढ़ाई करवाने के लिए साफ मना कर दिया। सभी गांव वाले और संस्था वाले सुरिंद्र की ओर देखने लगे…..।”
संस्था के अधिकारी ने सुरिंद्र से, मिठु की पढ़ाई ना करवाने का कारण पूछा तो सुरिंद्र ने कहा, “मेरी बेटी अगर स्कूल जाएगी तो घर का काम कैसे सीखेगी? घर का काम तो चलो सीख भी लेगी, लेकिन खेती कहाँ से सीखेगी? कल को शादी होगी, किस मुँह से और क्या कह कर अपनी बेटी की शादी करूँगा?” सारी उम्र मैं इसका खर्चा नहीं उठा सकता, इसीलिए मैंने दूसरे बच्चे के बारे में भी कभी नहीं सोचा। ऊपर से स्कूल भी यहाँ से पाँच किलोमीटर दूर है, कैसे जाएगी मेरी बेटी? लेकिन आप सबको इन बातों से क्या मतलब? आप तो आए, सर्वेक्षण किया और अपना काम निपटा कर, दूसरे के घर में आग लगाकर चल दिए। कभी देखो हमारी हालत भी, बारिश नहीं हो रही, कहाँ से पैदावार बढ़ेगी? कैसे खर्चे उठाऊँगा? ऊपर से स्कूल और पढ़ाई के खर्चे मेरे सर पर डाल कर, यहाँ सबके सामने मेरा मज़ाक बना रहे हैं। सहयोग की बात कर रहे, कितना की सहयोग करोगे आप? क्या आप खेती में सहयोग करेंगे? दीजिए जवाब? इतनी दूर पैदल आना-जाना, और भी कई खर्चे होते। मैं नहीं उठा सकता इतने खर्चे बस। और मान लो, कल को अगर पढ़ाई काम नहीं आई मेरी बेटी के, तो क्या करूँगा मैं? अगर यह पढ़-लिख गई तो रिश्ता कहाँ से मिलेगा इसकी बराबरी का? और आप जो बात कर रहे हैं कि “पढ़ेगा इंडिया, तभी बढ़ेगा इंडिया”, तो अगर यह पढ़ भी लेती है, तो कौन सा यह देश की प्रधानमंत्री बन जाएगी, जो यह हमारे इंडिया को आगे बढ़ाएगी? बातें करते हैं………।
संस्था के सभी अधिकारी बड़ी गौर से सुरिंद्र को सुन रहे थे। सुरिंद्र की बात खत्म होने पर एक “महिला अधिकारी” उठीं और सुरिंद्र से कहने लगी, “हमने आपकी सारी बातें सुनी और उन बातों पर गौर भी की।” अब अगर मैं आपसे यह कहूँ कि आपसे एक रुपये तक का खर्चा नहीं लिया जाएगा? और खेती में भी आपकी बेटी आपका क्या, बल्कि आने वाले समय में, यह सारे गांव का सहयोग करेगी। इसके साथ-साथ आपकी बेटी की सारी जिम्मेदारी हमारी होगी, तो क्या कहेंगे? (यह सब कुछ, महिला अधिकारी, पास बैठी मिठु के आँखों में सजे, हंसीन सपने देखकर कह रही थी, जिन्हें वह बखूबी समझ रही थी!) फिर भी, सोच कर बता दीजिए। हम इंतज़ार कर लेते हैं। अगर यह गांव नहीं, तो दूसरा गांव सही।
सुरिंद्र फिर भी चुप रहा और सभी गांव वाले सुरिंद्र को समझाने में लग गए। सभी ने कहा, “सुरिंद्र तू तो एक भाग्यशाली पिता है।” ऐसे मौके कहाँ मिलते हर किसी को? गांव के कुछ बड़े लोग कहने लगे, “हमारे पास बेशक पैसे हैं, सब कुछ है, फिर भी पढ़ाई के लिए कभी हमारे बच्चों की इतनी तारीफ़ नहीं हुई, मजबूरन उन्हें स्कूल तक छोड़ने पड़े।” शायद, तभी हमारा गांव आज पीछे है। आज तो हमें इतना तक समझ आ रहा है कि, “विकास के लिए पैसा नहीं, बल्कि पढ़ाई ज्यादा जरूरी होती है।”
“गांव के लोगों द्वारा समझाने पर सुरिंद्र अपनी बेटी को पढ़ाने के लिए तैयार हो गया! यह सुन सुरिंद्र की पत्नी किरण भी बहुत खुश हुई और मिठु का तो मानो सपना पूरा हो रहा हो!”
सभी ने मिठु को बधाई दी, और उस महिला अधिकारी ने मिठु से कुछ कहने के लिए कहा! मिठु ज्यादा तो नहीं बोली, लेकिन इतना ज़रूर कहा कि मैडम जी, मेरा “मिठु” नाम तो घर का नाम है, असली नाम तो साक्षी है।”
“यह सुन कर सभी हंस पड़े!”
अगले दिन से ही, रोज़, मिठु को स्कूल ले जाने के लिए संस्था की गाड़ी आने लगी। समय बीतता गया…….।
मिठु पढ़ाई के साथ-साथ घर का काम भी करती और अपने बाबू जी से, खेती की जानकारी लेकर, खेती में भी हाथ बंटवा दिया करती।
कुछ सालें के बाद, आज, वही महिला अधिकारी, अपनी संस्था की टीम के साथ, फिर से मिठु के गांव आती है। लेकिन इस बार वह कोई सर्वेक्षण करने नहीं, बल्कि एक छोटा सा कार्यक्रम करने आती हैं।
कार्यक्रम में सभी गांव वालों की उपस्थिति में, महिला अधिकारी सभी को सम्बोधित करती हुई कहती हैं, “आज से आपके गाँव को एक नया मुकाम हासिल हुआ है, जिससे आपके गांव की तरक्की भी शुरू हो जाएगी।”
यह सुन गांव वाले, “सोच में डूब गए कि भला ऐसा क्या हुआ होगा?”
आगे भाषण को जारी रखते हुए अधिकारी कहने लगीं, “अब आपके गांव में कृषि के क्षेत्र में बेहतरीन कार्य शुरू किए जाएँगे।” अब कृषि द्वारा ही आपके गांव का नाम, देश के हर कोने तक फैलेगा।
तभी बीच में एक बुजुर्ग चाचा खड़े होकर कहने लगे, “मैडम जी, ज्यादा बातें ना सुनाओ, जल्दी बताओ कि, आखिर आप, ऐसा कौन सा “अल्लादीन का चिराग” हमारे गांव को देने वाली हैं।”
“बुजुर्ग चाचा की यह बात सुन, अधिकारियों सहित, वहाँ उपस्थित सभी लोग हंसने लगे…!”
इस पर महिला अधिकारी ने सभा में बैठी, मिठु को मंच पर बुलाया और सबके सामने मिठु की पीठ थपथपाती हुई कहनी लगीं, “चाचा जी, अल्लादीन का चिराग तो नहीं, लेकिन हाँ, “सुरिंद्र का चिराग” आप सबके लिए हम जरूर दे रहे हैं।”
“यह सब सुन, माहौल में एक दम सन्नाटा सा छा गया….।”
जी हाँ, आपके गांव की बेटी “साक्षी”, ओह! मतलब “मिठु”, अब “कृषि विशेषज्ञ” बन चुकी है। अब कृषि क्षेत्र के हर कार्य में आपकी मिठु, आपके गांव का नाम बहुत ऊंचाइयों तक पहुंचाएगी।
और आज से कुछ साल पहले, इसी स्थान पर जो मुझसे प्रश्न पूछा गया था कि पढ़ कर कौन सा प्रधानमंत्री बनेगी, और देश को आगे बढ़ाएगी तो आज मैं उस बात का जवाब देती हूँ, “ज़रूरी नहीं कि केवल देश का प्रधानमंत्री ही, अकेला देश को आगे बढ़ाए। देश को आगे बढ़ाने के लिए, शुरुआत हमेशा छोटे स्तर से ही करनी पड़ती है।”
“साक्षी” के “कृषि विशेषज्ञ” बनने पर, ना केवल आपके गांव को खुशी होगी, बल्कि पूरा प्रदेश इस पर गर्व महसूस करेगा। यही बात तो हमें समझनी है। “और लड़की घर का काम करेगी, ज्यादा नहीं पढ़ेगी, भला ऐसी सोच रख कर, कैसे हमारा समाज, हमारा देश आगे बढ़ेगा?”
हमारे देश को आगे बढाने के लिए हर किसी का शिक्षित होना बेहद ज़रूरी होता है। अब साक्षी, आपके गांव की प्रेरणा बन चुकी है। ना केवल गांव की बल्कि सभी के लिए प्रेरणा का जरिया बन चुकी है।
“आज साक्षी पढ़ी, तो आगे बढ़ी। कल कोई और साक्षी पढ़ेगी तो वो भी आगे बढ़ेगी।” ऐसे करते-करते “जब सारा इंडिया पढ़ेगा, तभी तो साथ में आगे बढ़ेगा इंडिया!”
मिठु को ऐसा सम्मान मिलते देख, मिठु के बाबू जी की आँखें भर आईं। और उन्होंने संस्था की अधिकारी से माफ़ी मांगते हुए उनका धन्यवाद किया।
“धीरे-धीरे साक्षी मैडम ने, कृषि के क्षेत्र में, उपज को बढ़ावा देना, ट्यूब-वेल लगवाना आदि कई नए आयाम स्थापित कर अपने गांव का नाम देश भर में रोशन कर दिखाया और सबसे पहले गांव में “पशु औषधालय” खुलवाकर, गांव में अन्य सुविधाओं की शुरुवात भी कर दिखाई। ऐसे कुछ बेहतरीन कार्यों के लिए 15 अगस्त के दिन, साक्षी को प्रधानमंत्री द्वारा सम्मानित भी किया गया।”
यह तो थी साक्षी मैडम, ओह! मतलब मिठु मैडम, की एक प्रेरणादायक कहानी, जो हमें यह सिखाती है कि, देश का आगे बढ़ना हमारी शिक्षा पर निर्भर करता है। इसके लिए यह मायने नहीं रखता, कि आपका पढ़ना भला देश को कैसे आगे बढ़ाएगा। हमारा पढ़ा हुआ, किसी ना किसी रूप में, हमारे देश के काम ज़रुर आता है, जिससे हमारे देश का नाम, हमेशा ऊंचाइयों पर रहता है। सही शिक्षा ही, किसी भी व्यक्ति को और देश को, सही दिशा प्रदान करती है। इसीलिए तो कहते हैं, “पढ़ेगा इंडिया, तभी तो बढ़ेगा इंडिया!”
लेखक: शिवालिक अवस्थी,
धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश।