प्रेम
प्रेम में न लाँघी गयी दहलीज,
ना तोड़े गए कानून,
ना पार की गयीं कोई सीमा,
ना होठों ने कुछ कहा,
ना ही स्पर्श की अनुभूति कोई रही,
उस प्रेम को सदा ही कम आँका गया
प्रेम में जहाँ न रही कोई भी उम्मीद,
ना पाने की कोई लालसा,
ना खोने का कोई भी गम ,
बस समानांतर चलते रहने की रही आकांक्षा,
कोमल भावनाओं के संग,
उस प्रेम को शायद विरला ही कोई समझा।
प्रेम जो ऋचाओं सा पवित्र बना,
ॐ की तरह रहा शाश्वत सत्य,
बाह्य सुंदरता को नही देखा गया,
मन की सुंदरता ही रही प्राथमिकता,
जिसमें मंदिर की घंटियों सी रही पवित्रता,
उस प्रेम को चाहिए था बस एक
प्रेमी ह्र्दय
जो हर एहसास ,हर भावना का
सम्मान करें।
प्रेम के इस अद्भुत रूप की सदा ही रही चाहत,
सच्चे दिल की यही जरूरत।