प्रेम
तुम प्रेम को लिखना
प्रेम को गढ़ना
प्रेम को पढ़ना
प्रेम को देखना
लेकिन तुम कभी किसी से प्रेम मत करना…
तुम प्रेम को महसूस करना
प्रेम को तकना
प्रेम में नाचना
प्रेम में गाना
लेकिन तुम कभी किसी से प्रेम मत करना…
तुम प्रेम की कल्पनाओं में बहना
प्रेम में उतरना
प्रेम में मचलना
प्रेम में टूट जाना
लेकिन तुम कभी किसी से प्रेम मत करना…
अगर तुम प्रेम करना चाहते हो
तो किसी पूर्ण व्यक्तित्व से करना
जो समझता हो प्रेम को
जिसका प्रेम रूप-रंग देह से परे हो
जो समझता हो तुम्हारे स्वाभिमान को
जिसका प्रेम एक निश्चल अविरल हो
जो बिना किसी बाधा के बिना किसी बंधन के
तुम्हारी तरफ बहता हो।
तभी प्रेम को जी पाओगे
तभी प्रेम को पढ़ पाओगे
तभी प्रेम को लिख पाओगे
तभी प्रेम को महसूस कर पाओगे
तभी प्रेम को समझ पाओगे
तभी प्रेमी कहलाओगे।
©✍️ शशि धर कुमार