प्रेम स्वतंत्र आज हैं?
नाम सजाया था हाथों पर
हल्दी लगायी थीं गालों पर
सात फेरे ही तो नहीं लिए
साथ वादे संग भी तो किए
याद हैं सबकुछ या
भूल गयीं तुम आज हों
कहतीं थी तुम मुझसे
मेरे कान्हा जी की d.P को
मैं क्यूँ हटाऊ अपने पास से
जाने के बाद तुम्हारें
सुनाई देती हर पल ये आवाज़ हैं
यहि कविताएं मेरी पहले
चेहरे पर खुशी देती थीं
पर आज उन तुम्हें
आता बड़ा लाज हैं
प्रेम में नहीं हैं कोई बन्धन
प्रेम भी स्वतंत्र आज हैं