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2 Jul 2021 · 1 min read

प्रेम में पागल

**प्रेम में पागल (ग़ज़ल)**
****212 222 12 2****
**********************

प्रेम में पागल हो चुकी मैं,
आबरू खुद की खो चुकी मैं।

जिंदगी में खाये बहुत गम,
हाल पर भी हूँ रो चुकी मैं।

हर किसी ने लांछन लगाया,
दाग जीवन के धो चुकी मैं।

लोग करते रहते बगावत,
भार हद बे हद ढो चुकी मैं।

यार मनसीरत देखता है,
बीज इंसानी बो चुकी मैं।
***********************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

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