प्रेम और भय क्या है दोनों में क्या अंतर है। रविकेश झा
नमस्कार दोस्तों आज बात कर रहे हैं प्रेम और भय के बारे में प्रेम क्या है भय क्या है दोनों का क्या योगदान है हमारे जीवन में।
प्रेम क्या है?
प्रेम को आप एक जटिल भावना कह सकते हैं जो विभिन्न रूपों में व्यक्त होती है। प्रेम में दो लोगों के बीच आकर्षण और जुड़ाव होता है। प्रेम में दूसरों के प्रति स्नेह और सम्मान की भावना होता है देने का मन करता है। यह एक भावना है और ये सबसे अच्छा भाव माना गया है। प्रेम में समर्थन और सहयोग की भावना होती है। प्रेम में विश्वास और भरोसा भी होता है। प्रेम में दूसरों के लिए त्याग और बलिदान की भावना होती है।
यह रोमांटिक प्रेम भी हो सकता है जिसमे एक दूसरों के प्रति प्रेम होता है पारिवारिक प्रेम पारिवारिक सदस्य में भी होता है मित्रता प्रेम जो मित्रों के बीच होता है आत्म-प्रेम यह प्रेम का वह रूप जो अपने आप के प्रति व्यक्त होता है। प्रेम वही एक है बस लोग के प्रति हृदय का योगदान होता है।
प्रेम में मन करेगा देने को सब कुछ लुटाने का मन, अगर नहीं करता फिर आप बुद्धि का और वासना के तरफ बढ़ रहे हो। जानना होगा की हम कैसे जी रहे हैं।
प्रेम आपके संबंध को मजबूत बनाता है। खुशी की संतुष्टि प्रदान करेगा, आत्मविश्वास और आत्मसम्मान बढ़ाएगा। जीवन को अर्थपूर्ण बनाता है।
भय क्या है?
भय एक मानसिक अवस्था है जो खतरे, असुरक्षा, या डर की भावना से उत्पन्न होती है। यह एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया है जो हमें खतरे से बचने और सुरक्षित रहने में मदद करता है।
भय के हम चार प्रकार बता रहे हैं।
1. भौतिक भय : जैसे की खतरा, चोट, या मृत्यु का भय हो सकता है।
2. मानसिक भय : जैसे की असफलता, रिजेक्शन, या मानसिक बीमारी का भय।
3. भावनात्मक भय : जैसे की दर्द, या खोने का भय, जिसे हम आंतरिक भी कह सकते हैं।
4. सामाजिक भय : जैसे की समाज में भय , यहां भी रिजेक्शन का भय, आलोचना , या अपमान का भय,
भय वही है बस रूप बदल जाता है।
भय में आप तनाव और चिंता, भय का शंका, पसीना और हृदय की गति में वृद्धि, नींद की कमी और थकान।
ये सब जागरूकता से स्पष्ट हो जाता है ध्यान करने से सब साफ दिखाई परता है।
प्रेम और भय दोनों मानव भावनाएं है, लेकिन इनमें कुछ मुख्य अंतर भी है।
प्रेम एक सकारात्मक भावना है जो दूसरों के प्रति स्नेह, सम्मान और आकर्षण की भावना को दर्शाती है।
भय एक नकारात्मक भावना है जो खतरे, असुरक्षा की भावना को दर्शाती है।
प्रेम में दो लोगों के बीच जुड़ाव और निकटता होती है।
भय में दूसरों से दूरी और अलगाव होता है।
प्रेम में समर्थन और सहयोग की भावना हो सकता है।
भय में रक्षा और सुरक्षा की भावना होता है।
प्रेम में विश्वास भरोसा होता है।
भय में संदेह होता है।
प्रेम में खुशी संतुष्टि होता है।
भय से दर्द और तनाव भी हो सकता है।
प्रेम सकारात्मक हो सकता है पर भय नकारात्मक ही होगा। प्रेम में जुड़ाव तो भय में दूरी होता है। प्रेम में समर्थन तो भय में रक्षा की बात होगा। प्रेम में विश्वास भय में संदेह होता है। प्रेम में खुशी मिलेगा आपको जबकि भय में दर्द होगा।
अब बात करते हैं भय और प्रेम को कैसे जाने भय से निर्भय के तरफ कैसे बढ़े। घृणा से प्रेम के तरफ कैसे बढ़े।
लगातार जागरूकता ध्यान के माध्यम से हम जागरूकता ला सकते हैं।
दूसरा विश्वास प्रेम से मानने से भी हम प्रेम कर सकते हैं। प्रेम हृदय की योगदान है इसे जानना होगा। जब तक अंदर प्रवेश नहीं करते तब तक हम प्रेम से परिचित नहीं हो सकते। हम प्राथना कर सकते हैं ध्यान तभी हम जानने ने में सक्षम होंगे। प्रेम और भय दोनों एक दूसरे से विपरीत हैं। प्रेम में हम दूसरों के विपरीत हैं। प्रेम में हम दूसरों के प्रति खुले और सहयोगी होते हैं, जबकि भय में हम दूसरों से अलग रक्षात्मक होते हैं।
प्रेम और भय के बीच संतुलन महत्वपूर्ण है। प्रेम की अधिकता से हम दूसरों के प्रति अधिक खुले और सहयोगी हो सकते हैं, जबकि भय की अधिकता से हम दूसरों के अलग हो सकते है हमें भय को जानना होगा, सबसे पहले हमें स्वयं के अंदर आना होगा तभी हम स्वयं को और स्वयं के अंदर भी जान सकते हैं। प्रेम सत्य है भय झूठ है।
हमें जागरूकता चाहिए तभी हम जागृत होंगे। प्रेम और भय दोनों मानव भावनाएं हैं जो हमारे जीवन को प्रभावित करता है।
प्रेम हमें दूसरों के साथ जोड़ता है, जबकि भय हमें सबसे अलग करता है। प्रेम और भय के बीच संतुलन बनना होगा तभी हम दोनों के परे जा सकते हैं।
भय के साथ जीना कोई पसंद नहीं करेगा, क्यों करेगा कोई बस प्रेम चाहिए सबको लेकिन हिम्मत हार के स्वयं के साथ चोट पहुंचाना ये सब गलत बात है। आप जागरूकता के तरफ बढ़े तभी आप सही और गलत के बीच संतुलन बना सकते हैं। और निर्भय हो कर जी सकते हैं।
धन्यवाद। 🙏❤️
रविकेश झा।