प्रिय-प्रतीक्षा
अप्सरा सी सजती, संवरती हूँ,
आइना देखा करती हूँ ।
सीमा के तुम प्रहरी प्रियतम,
राह निहारा करती हूँ ।
अप्सरा सी … ……!!
माथे का झूमर, कानों का झुमका,
हाथों की मेंहदी कहती है।
ह्रदय-पटल पर सदा ही प्रियतम,
छवि तुम्हारी रहती है।
झुकी-झुकी पलकों संग तेरे,
सपने देखा करती हूँ ।
अप्सरा सी… ….!!
देश की सीमा के तुम प्रहरी,
मुझको इसका मान सदा।
मन-चंचल विचलित कर देता
रोग विरह का बड़ा बुरा।
समझाती मन को मैं “कंचन”
तेरी प्रतीक्षा करती हूँ ।
अप्सरा सी …. ……!!
— रचनाकार : कंचन खन्ना,
मुरादाबाद, (उ०प्र०, भारत) ।
सर्वाधिकार सुरक्षित (रचनाकार)।
दिनांक – १०.०४.२०१८.