प्रियतमा
पट अपनी घुंघट के अब खोल प्रिये
आज प्रणय जीवन के प्रथम निशा में
नूपुर क्वणन सा मीठे बोल को सुन
अब मेरे मन में जाग रही है तृष्णा
दो बोल प्यार के बोल कर ही तुम
प्रिये मुझको अधरों का पान करा दे
था प्रेम कभी विषय जब सपनों का
दिन का क्षण भी रात हुआ करता था
आज बैठ पिया के मुख आगे तुम
मेरे नयनों में अपने नयनों को डालो
अपने अधरों के मीठे रस से ही तुम
प्रिये मुझको प्रेम स्नान करा दे
नजर उठा जब नयनों से तो तुम
गुल लगती हो किसी गुलशन के
थक चुका हूॅं मन बोझिल है मेरा
बढ़ सकूॅंगा ना आगे एक कदम भी
सिर रखकर अपनी गोद में ही तुम
प्रिय मुझको वहीं विश्राम करा दे
आज हमारे कोमल स्पर्श मात्र से ही
सम्पूर्ण कान्तिमय हो जाएगी तुम
अच्छा होगा अब भूलकर सभी को
अपनी स्मृति में सिर्फ मुझे समा तुम
सुकोमल इस प्राकृतिक सौन्दर्य का
प्रिय मुझको दर्शन हर शाम करा दे