प्रसिद्ध मैथिली साहित्यकार आ कवि पं. त्रिलोचन झा (बेतिया चम्पारण जिला )
अइ कोठीक धान ओइ कोठी-
नाम हमर त्रिलोचन झा थिक वानू छपरा वासे।
मध्य जिला चम्पारणहिक जे वेतिया नगरक पासे।।
मिथिला देशहि पश्चिम दक्षिण योजन मात्र प्रमाणे।
प्रसिद्ध मैथिली साहित्यकार आ कवि
पं. त्रिलोचन झा (बेतिया चम्पारण जिला ) :
बिसरल मातृभाषानुरागी
(भाखा, सितम्बर 1987/अखियासलमे संकलित,1995)
पं. त्रिलोचन झा (1878-3 फरवरी 1938) क प्रसंग जागल जिज्ञासाकेँ शान्त करबाक बड़ कम सामग्री उपलब्ध अछि। लिखित सामग्री कही वा साहित्यिक सक्रियताक सूचनाक एक मात्र आधार अछि डा. जयकान्त मिश्रक ‘हिस्ट्री आफ मैथिली लिटरेचर’। ओकर वादक इतिहासकार पं. त्रिलोचन झाक प्रसंगमे एको शब्द वेशीक कोन कथा कम्मे लिखलनि अछि। आदित्य सामवेदीक एक लेख ‘साहित्य तपस्वी पं. त्रिलोचन झा’ प्रकाशित भेल अछि।(मैथिली अकादमी, पत्रिका) ओहि मध्य पं. त्रिलोचनक व्यक्तित्व आ कृतित्वक विस्तारसँ परिचय अछि। दोसर आधार अछि ओहि व्यक्तिक संस्मरण जे पं. त्रिलोचन झाकेँ देखने छलाह। हुनक सक्रियतासँ परिचय पओने छलाह। हिनक रचनाक प्रसंग लोकक अनभिज्ञताक पहिल ओएह कारण अछि, जे ओहि कालक आन रचनाकारकेँ नहि जानि सकबाक अछि। तात्पर्य जे पं. त्रिलोचन झाक प्रायः अधिकांश रचना ‘मिथिला मिहिर’, ‘मिथिला मोद’’ आदि पत्रिकामे प्रकाशित भेल अछि जे आब सर्वसुलभ नहि अछि।
डा. मिश्रक अनुसार पं. त्रिलोचन झा अनुवादक छलाह, कवि छलह, आख्यान लेखक छलाह, निबन्धकार छलाह, सामाजिक कार्यकर्ता छलाह, मिथिला आ मैथिलीक प्रबल हित चिन्तक छलाह। पं. त्रिलोचन झाक दृढ़ मान्यता छलनि जे अपन भाषा-साहित्यक उन्नतिएसँ शेष क्षेत्रमे उन्नति कएल जा सकैछ। ओएह सभ उन्नतिक प्रस्थान बिन्दु थिक।
पं. त्रिलोचन झामे अपूर्व संगठन शक्ति छल। ओ कतेको स्वयंसेवी संस्थाक संगठन कए मैथिलीक आन्दोलनकेँ प्रखर ओ मुखर कएल। पंडित त्रिलोचन झाक संगठनात्मक क्षमताक प्रसंग बाबू गंगापति सिंह लिखने छथि जे पं. त्रिलोचन झाक उद्योगसँ स्थापित ‘सुवोधिनी सभा’क मैथिली विभागसँ बहुत किछु आशा अछि। एहि तरहें सब प्रान्तमे एकरा हेतु (मैथिलीक विकासक हेतु) केन्द्र स्थापित करबाक चाही।’(मि.मि.26.01.1916)
पं. त्रिलोचन झा, मात्र मैथिली भाषा ओ साहित्यक लेल सक्रिय नहि रहैत छलाह, अपितु क्षेत्रक विकास लेल सेहो सक्रिय छलाह। सुख ओ समृद्धिक हेतु घूमि-घूमि लोककेँ जगबैत छलाह। अवनतिक कारणकेँ स्पष्ट करैत छलाह। अभीष्ट प्राप्तिक हेतु जनमानस तैआर करैत छलाह। पं. त्रिलोचन झाक एहि सक्रियता ओ वैशिष्ट्यक प्रसंग पं. यदुनाथ झा ‘‘युदवर’’क विचार अछि जे मिथिलाक सम्प्रतिक अवस्थाक प्रसंग पं. त्रिलोचन झाक ‘वक्तृता पुस्तकाकार पढ़ै योग्य अछि।’’(मिथिलामोद,1914) यदुवरक एहि कथनसँ प्रतीत होइछ जे ओ कोनो पोथीक चर्चा करैत छथि। परंच ओ कोन पोथी छल तकर कोनो सूचना उपलब्ध नहि अछि।
मैथिलीक सक्रियताक मंच ओहि समयमे ‘‘मैथिली महासभा’’ छल। पं. त्रिलोचन झा ‘‘मैथिल महासभाक’’ एक सबल स्तम्भ छलाह। प्रत्येक क्रिया-कलापक भागीदार छलाह। ओ एहि विचारक छलाह जे ‘‘मैथिल महासभाक’’ कार्यक्षेत्र व्यापक हो। संगठन व्यापक हो। ‘‘मैथिल महासभा’’ मे पं. त्रिलोचन झाक संलग्नताक प्रसंग अपन संस्मरण सुनबैत बाबू श्री कृष्णनन्दन सिंह (ज. 20 जुला 1918) कहलनि अछि जे ओ एकटा नीक वक्ता छलाह। हुनक ओजस्वी धारा-प्रवाह एवं आलंकारिक भाषण सुनि श्रोतागण मन्त्र मुग्ध भए जाइत छल। आ एही वाक् पटुताक कारणें ‘‘महासभा’’क प्रत्येक अधिवेशनमे धन्यवाद ज्ञापनक भार पं. त्रिलोचन झाकेँ देल जाइत छल। एहिसँ एकटा लोकोक्ति बनि गेल छल। अन्यो कार्यक्रमक अवसर पर, जाहिठाम त्रिलोचन बाबू नहिओ रहैत छलाह, धन्यवाद ज्ञापनकत्र्ता अन्तमे कहि दैत छलथिन्ह त्रिलोचन बाबूओक दिससँ धन्यवाद दैत छी। एहि संस्मरणसँ एकटा तथ्य अवश्य समक्ष आबि जाइछ जे पं. त्रिलोचन झा अपना समयमे बड़ लोकप्रिय छलाह तथा मिथिला, मैथिल एवं मैथिलीक लेल आयोजित होइत प्रत्येक कार्यक्रममे अवश्य सहभागी रहैत छलाह।
पं. त्रिलोचन झाक जन्म (1878 ई.) ओहि समयमे भेल जखन प्रथम स्वाधीनता संग्रामक असफलताक कारण केँ देखि, भारतीय चेतना आत्म निरीक्षण कए, देशवासीकेँ सुशिक्षित करबा लेल प्रयत्नशील भए गेल छल। एकसँ एक समाज सुधारक भारतीय मंच पर उपस्थित भए रहल छलाह। सुधारवादी आन्दोलन क्रमशः तीव्र भए रहल छल। अपन भाषा-संस्कृति, आचार-व्यवहार दिस लोकक ध्यान आकर्षित भए गेल छलैक। समाजमे व्याप्त दुर्गुण, विशेष कए वैवाहिक समस्यासँ आक्रान्त समाज प्राचीन गौरव गाथाक गान दिस विशेष रूपें उन्मुख, भए गेल छल। तात्पर्य जे अपन विकृतिपूर्ण वर्तमानसँ मुक्त होएबा लेल प्रत्येक व्यक्ति साकांक्ष भए गेल छल। आ इएह दृष्टि साहित्यकारोक छलनि, जाहिसँ परिचित भए ओ लोकनि साहित्य सर्जना करैत छलाह। कवि लोकनिक दृष्टि उद्वोधनात्मक होएबाक एक दोसरो प्रमुख कारण छल जे शृंगार, ज्ञान, भक्ति इत्यादि सँ संबंधित कविताक रसास्वादन ई देश नीक जेकाँ कए चुकल छल। विलासादिक समय छलैक नहि तें भक्ति, व ज्ञान, वैराण्य ओ शृंगार विषयक काव्यमे लोकक रुचि नहि छलैक। तात्कालिक साहित्यिक दृष्टि ओ लोक रुचिक धुनमे मस्त छथि। देशकेँ, जातिकेँ अथवा समाजकेँ ऊपर उठेबाक प्रयत्न सभ कएल रहल छथि। राष्ट्रीय भावसँ सभक हृदय भरल छलैक जे किछु करैत अछि केवल राष्ट्रीय उद्देश्य सँ। पं. त्रिलोचन झाक कृतिक चर्चा करैत डा. जयकान्त मिश्र लिखैत छथि जे ओ भगवत गीतक पद्य और गद्य मे अनुवाद कएल, महाभारतक उद्योगपर्वक अनुवाद कएल, ‘शकुन्तलोपाख्यान’ ओ अपन भाए हरिमोहन झा वकिलक जीवनी लिखल तथा छिट-फुट निबन्ध टिप्पणी तथा उद्बोधनात्मक कविता लिखल। किन्तु पं. त्रिलोचन झाक चर्चा ओहि सभ रचनाक आधार पर हम करब जे हमरा पत्र-पत्रिकामे छिड़िआयल भेटल अछि। पूर्वहि लिखल अछि जे पं. त्रिलोचन झाक समयमे सुधारवादी आन्दोलन तीव्र भए रहल अछि। मातृभूमि वन्दना आ अतीत गान मुख्य काव्य प्रवृति छलैक। ओही धाराक अनुरूप पं. त्रिलोचन झा ‘मातृभूमि वन्दना’ मिथिलाक प्राकृतिक, सांस्कृतिक और वैचारिक उत्कर्षक वर्णन कएल अछि। प्राचीन गाथा प्रस्तुत करैत वर्तमानक कलुष और पराधीनताजन्य विकारकेँ दूर करबा लेल लोकमानस तैयार कएल अछि। ‘मिथिलाक वन्दना’ करैत लिखल अछि-
‘‘जय जय जयति मैथिल जाति।
निगम आगम कर्मरत जे मध्य भारत ख्याति
विविध विद्या विभव बुधिबल विनय नयमय जाति
भूमि पावन अति सुहावन सुखद सुरपुर भाति।
सुफल सुजला बहुत सरिता वायु सुरभित गात।’’(मिथिला गीताञ्जलि)
अपन सामर्थ्यक बाहरक उचित वस्तु प्राप्त करबा लेल लोक ईश्वरक शरणापन्न होइछ। कविकेँ विश्वास छनि जे शत्रुकेँ पराजित करबा लेल चाही शक्ति। शक्ति लेल ओ चण्डीक आह्वान करैत जानकीक विशेषरूप, अरिदल नाशक चण्डीकेँ उपालम्भ दैत कवि लिखैछ-
‘‘चण्डि तोहर मिथिला देश’।
जकर सुपच्छिम भाग बैसलि धरि सुन्दर वेश
जाहि भूमिसँ जन्म लेलहुँ भऽ सुता मिथिलेश।।
पं. त्रिलोचन झा अनुभव करैत छथि जे मैथिल आलस्यक पाँकमे फंसि गेल छथि। जीवनक समस्त लक्ष्य स्वार्थसाधनमे केन्द्रित छनि। अतएव, ओ समस्त मिथिलावासीसँ मिथिलाक गीत विभव ओ प्रतिष्ठा पुनः प्राप्त कए लेबा लेल ललकारैत छथि। मिथिलाक प्रतिष्ठा-रक्षाक दायित्व-बोध सँ परिचित करबैत छथि। कविक ई ललकार अथवा अनुरोध कोनो एक व्यक्तिक नहि, अपितु ओहि वर्गक विचारक प्रतिनिधित्व करैछ जे मिथिलाकेँ उत्कर्षमय देखय चाहैछµ
‘‘भैया मैथिल मान बचाऊ, जुन जग नाम हँसाउ,
भाषा भेष भाव भसिआएल ककरा जाय सुनाउ
क्यो नहि सुननिहार छथि एकरा हाय! कतै हम जाउ
कहुना स्वारथ साधन आपन पैघ-छोट सभ ठाँउ।
चरण शरण लोचन मन राखू, दुर्गति सकल मेटाउ।
मैथिलक जीवनधारामे रागात्मकता अपेक्षाकृत विशेष रहल अछि। एहि रागात्मकताक अभिव्यक्ति काव्य सर्जना तथा विभिन्न अवसर पर गाओल जाइत समसामयिक गीतक श्रवणसँ स्वतः स्पष्ट भए जाइछ। आ प्रायः संस्कारजन्य एहि रागात्मकताक कारणें काव्य रचना विशेष कए गीत राग तालाश्रित होइत छल एंव ऋतु साम्य गीत गएबाक परिपाटी जीवित अछि। एहनहि ऋतु साम्य गीतक श्रेणीमे फागु, चैत आदि अैत अछि। ऋतु साम्य एहि गीतक विशेषता होइछ जे विशेष प्रकारक भासक लहरि पर मनुष्यक किछु मूल प्रवृत्तिकेँ प्रज्वलित करैछ। अपन समसामयिक अन्ये कवि जेकाँ पं. त्रिलोचन झा प्रचलित भास आदिक लहरि पर नव कथ्य भासय लेल छोड़ि देल। ओकर माध्यमसँ भर्त्सना उद्बोधन, त्याग, मातृभूमि ओ मातृभाषाक महत्वकेँ प्रस्तुत करए लगलाह। एहि प्रकारक रचना एक दिससँ अवसर विशेष पर गाओल जाएवला गीतक भासक आनन्द दैत छल, तँ दोसर दिस अर्थक बोधसँ श्रोताकेँ आत्मबोधक सम्भावना रहैत छलैक। जकर लय, निश्चित रूपे सामाजिक दायित्वबोधक परिपालनक होइत छलैक। चैतक भासपर त्रिलोचन झा लिखल अछि।
‘‘मैथिल गण जागू अपन काजमे लागू, हो रामा…
देश देश सब उन्नति कै कै जाइछ बढ़ल आगू, हो रामा
विद्या विभव विवेक बढ़ाउ, द्वेष परस्पर त्यागू, हो रामा।
पं. त्रिलोचन झाक सामाजिक बोध आ समाजकेँ सुधारबाक चिन्ता तीव्र छल। तें, जतय कतहु ओ अनुभव करैत छलाह मिथिला, मैथिल एवं मैथिली पर आघात होइत अछि, चुप्प नहि रहि सकैत छलाह। हुनक प्रहार तत्काल होइत छल आ आरोपकर्ता धाराशायी भए जाइत छलाह। हिन्दी पत्रिका ‘सरस्वती’क अक्टूबर 1909क अंक मे, जनार्दन झा ‘जनसीदनक’ लेख ‘मैथिलों की वैवाहिक परिपाटी’ प्रकाशित भेल जे पं. त्रिलोचन झाक मतें ओ मैथिल जाति पर आक्षेप छल। ‘‘मोद’’क माध्यमे दूनू गोटेमे पत्राचार भेल। अन्तमे त्रिलोचन झाक तर्कक समक्ष जनसीदनजी पराभूत भेलाह आ अपन गलती स्वीकार कएल। जनसीदनजीक प्रसंग त्रिलोचन झा लिखैत छथि- ‘‘मैं आपके प्रखर विद्वतासे पूर्ण परिचित हूँ, किन्तु आपके यथार्थ कूर्मग्रीवशील स्वभाव का पता इसी वार लगा है।’’
पं. त्रिलोचन झाकेँ जहिना मिथिला आ मैथिलीसँ अगाध प्रेम छलनि तहिना -यशस्वी मैथिलक प्रति हुनकर हृदयमे अपार सम्मान छल। एकर एकटा ज्वलंत उदाहरण भेटल अछि। पं. विंध्यनाथ झा (1887-1912)क असामयिक निधनसँ समस्त मैथिल समाज शोक संतप्त भए गेल छल। पं. त्रिलोचन झाक श्रद्धाजलि ‘‘विन्ध्यनाथ बाबूक शोक’’ शीर्षक कविता हृदयक मर्मकेँ वेधि, फूटि पड़ल अछि-
‘‘हा ! हा!! मिथिला रत्न कतै दा गेल हेड़ाए
हा! हा!! सद्गुणमूर्ति गेला कत लोक विहाए
हा! हा!! बाबू विन्ध्यनाथ झा कतै पधारल
करुणा स्निध निमग्न जाति मैथिल न निहारल
प्रथम ग्रैजुएट हाय! जाति मैथिल मे भेलहुँ
तत्परताक स्वरूप अहाँ मिथिलाकेँ देलहुँ।।’’
पं. त्रिलोचन झा गीताक मैथिली अनुवाद ‘श्रीमद्भगवत्गीतादर्श’ नामे कएने छथि। ओहिमे अपन परिचय निम्न प्रकारे लिखल अछि-
‘नाम हमर त्रिलोचन झा थिक वानू छपरा वासे।
मध्य जिला चम्पारणहिक जे वेतिया नगरक पासे।।
मिथिला देशहि पश्चिम दक्षिण योजन मात्र प्रमाणे।
नारायणि तट सौं अछि शोभित जानू विज्ञ सुजाने।।
कैशाल स्थित कूमर झाहिक ज्येष्ठ पुत्र हमही छी।
भूषण झाक पौत्र हम थिकहुँ मूल गोत्र मघही छी।।
भारद्वाजक वंश बेलोंचय सुदइ मूले जानू।
महादेव झा पांजि ख्यात अछि पंजीकाराहि मानू।
श्रीकपिलेश्वर झा सुयोग्यवर पलीबाड़ जमदौली।
थिकहुँ हुनक दौहित्र थिकथि जे वेतिया बनैली राजे।
बेतियाधीशक सचिव पितामह पिता बनैली राजे।
संबंधी भेलाह रहै छी, हुनके आब समाजे।।’’
‘‘जाति देश हेतु सब किछु अहाँ मिथिलाकेँ देलहुँ।’’ स्वीकार कएनिहार पं. त्रिलोचन झा, बेतियाक प्रसंग वड़ कम सामग्री सम्प्रति उपलब्ध अछि। किन्तु जे किछु उपलब्ध अछि तकरा आधार पर निश्चित रूपें कहल जा सकैछ जे अपन समसामयिक परिवेशक प्रति पूर्ण जागरूक छलाह, समाज, देश आ भाषा-संस्कृतिक रक्षाक निमित अपन कत्र्तव्यसँ ओ पूर्ण परिचित छलाह तथा तदनुरूपे जीवन मूल्य छलनि। वात आ व्यवहारमे समानता पं. त्रिलोचन झा, वेतियाकेँ युग युग धरि मोन रखबा लेल पर्याप्त अछि। परंच इहो सर्वथा आवश्यक अछि जे हुनक छिड़िआएल रचनाकेँ ताकि प्रकाशमे आनल जाए एवं हुनक अवदानक चर्चा आ विवेचन कएल।
पुनश्च:मैथिल महासभाक एक अधिवेशन बेतियामे भेल छल। पं त्रिलोचन झा संयोजक छलाह। कलकत्ता विश्वविद्यालयमे मैथिलीक प्रवेशक प्रस्ताव एतहि पारित भेल छल। एहू दृष्टिसँ पं त्रिलोचन झाक अवदान महत्त्वपूर्ण अछि। ओ स्मरणीय छथि।