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6 Jun 2021 · 1 min read

ग़ज़ल

आजकल कुछ सुधार है प्यारे…?
या वही तेज धार है प्यारे…?

कौन जाने कि कब, कहाँ कैसे..?
कौन किसका शिकार है प्यारे…?

तैरने का नहीं हुनर जिसको,
वो भी दरिया के पार है प्यारे…!

झाँक मत इस तरह गिरेबाँ में,
आबरू तार तार है प्यारे…!

पूछना क्या यहाँ किसी से कुछ,
हर कोई राजदार है प्यारे…!

ख़ंजरों की नहीं जरूरत अब,
लफ्ज़ ही आर पार है प्यारे।

रातभर करवटें..? यक़ीनन यह,
इश्क़ का ही बुखार है प्यारे।

हैसियत मेरी भी बता मुझको,
देख इतनी पगार है प्यारे..!

पंकज शर्मा “परिंदा”

3 Likes · 199 Views
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